Sunday 30 July 2017

केलिमुत्तू की विलक्षण क्रेटर लेक्स

 'सौन्दर्य" से लबरेज निराली छटा देश-दुनिया के अजब-गजब नजारों में खूब दिखेगी। सौन्दर्य शास्त्र को रेखांकित करने वाले प्राकृतिक नजारों की देश-दुनिया में कहीं कोई कमी नहीं। 

   खास तौर से यह नजारे अजब-गजब भी... सौन्दर्य से लबरेज भी... आैर प्राकृतिक उपहार भी...। ज्वालामुखी विस्फोटक होने के साथ ही अब पर्यटन स्थल की शक्ल भी लेने लगे। इण्डोनेशिया के केलिमुत्तू ज्वालामुखी में भी दुनिया को कुछ ऐसा ही दिख रहा। केलिमुत्तू ज्वालामुखी क्षेत्र की प्राकृतिक सम्पदा ने विध्वंसक परिवेश को भी पयर्टन के सुन्दरता से भर दिया।
        केलिमुत्तू ज्वालामुखी के शिखर पर तीन विलक्षण झीलें हैं। विलक्षणता यह है कि इन झीलों का जल रंग हमेशा परिवर्तित होता रहता है अर्थात बदलता रहता है। यह विलक्षण झील अपने जल का रंग कभी लाल नीला तो कभी हरा व काला कर देती हैं तो चाकलेट-ब्रााउन रंग कर देती हैं। खास बात यह है कि एक ही स्थान पर होने के बावजूद इन झीलों के जल का तापमान एवं रासायनिक गुण विभिन्नता से परिपूर्ण हैं।
         इण्डोनेशिया की इन झीलों को 'केलिमुत्तू क्रेटर लेक्स" के नाम से जाना जाता है। इण्डोनेशिया के फ्लोरेंस द्वीप के निकट यह झीलें हैं। यह क्षेत्र इण्डोनेशिया की राजधानी से पूर्व के प्रांत नुसा तेगास में स्थित है। इस ज्वालामुखी के तीन शिखर हैं। इन शिखर पर ही झील स्थित हैं। इनमें एक झील को टीयू बुपुु कहा जाता है। इसे पुराने लोगों की झील के तौर पर देखा जाता है। 
       अन्य दो झीलों को टीयू को नुवा तथा टीवू के नाम से जाना जाता है। इनको युवा पुरूषों व मेडन की झील कहा जाता है। यह मुग्ध करने वाली झीलें दुनिया के आकर्षण का केन्द्र हैं। इण्डोनेशिया की यह विलक्षण झीलें ज्वालामुखी पर करीब 1640 मीटर ऊंचाई अर्थात शिखर पर हैं। अध्ययन में पाया गया कि इनके रासायनिक तत्व अलग-अलग हैं। 
     सुन्दर झीलों का इण्डोनेशिया में यह अतिलोकप्रिय पर्यटन स्थल है। इण्डोनेशिया के भूवैज्ञानिकों ने ज्वालामुखी सहित सम्पूर्ण क्षेत्र का अध्ययन किया तो जल रंग परिवर्तन सहित तमाम विलक्षणतायें मिलीं। इण्डोनेशिया ने केलिमुत्तू को राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया है। यह क्षेत्र खनिज व रासायनिक सम्पदाओं से परिपूर्ण है। 
       विशेषज्ञों की मानें तो झीलों के जल रंग परिवर्तन के साथ ही विभिन्न प्रकार की गैसों की उपलब्धता भी है। राष्ट्रीय उद्यान घोषित होने के बाद इस क्षेत्र में पर्यटकों को आवागमन की सहूलियत हो गयीं। विशेषज्ञों की मानें तो वर्ष 1915 में इन विलक्षण झीलों की खोज हुयी। एक क्षेत्रीय डच सैन्य अफसर बी वैन सचटेेलेन ने पहली बार देखा था।
      विलक्षणता ने सैन्य अफसर का ध्यान आकर्षित किया। वर्ष 1929 में वाई बॉयमन ने इसका उल्लेख किया।पर्यटकों के लिए निकट ही नियमित हवाई सेवायें उपलब्ध हैं। केलिमुत्तू ज्वालामुखी क्षेत्र में आवासीय सहूलियतें भी हैं जिससे पर्यटक आसानी से क्षेत्र में विश्राम कर सकते हैं।
     शहरी क्षेत्र से केलिमुत्तू तक पहंुचने में लगभग तेरह किलोमीटर की यात्रा करनी होती है। आम तौर पर पर्यटक 'सूर्योदय का सौन्दर्य" देखने के लिए लालायित रहते हैं क्योंकि सूर्योदय का सौन्दर्य भी विलक्षण ही होता है। लिहाजा अधिसंख्य पर्यटक क्षेत्र में रात्रि प्रवास करते हैं। 

Monday 24 July 2017

गुलाबी जल वाली हिलैयर झील

        देश-दुनिया-जहाँ की धरती प्राकृतिक सौन्दर्य... प्राकृतिक खजाना... प्राकृतिक उपहारों की श्रंखला से लबरेज दिख रही। प्राकृतिक धरोहरों व उपहारों की श्रंखला निश्चय ही मन मोह लेती है। इन अप्रतिम सौन्दर्य उपहारों के दिग्दर्शन के लिए देश-दुनिया के सौन्दर्य प्रेमी व पर्यटक खिचे चले आते हैं।

      पश्चिमी आस्ट्रेलिया की 'गुलाबी झील" (पिंक लेक) भी प्राकृतिक खजाना का दुनिया को एक अद्भूत उपहार है। गुलाबी रंग के पानी वाली 'हिलैयर झील" का जल भले ही खारा हो लेकिन उसका सौन्दर्य मन को लुभाता है।
       दक्षिणी महासागर से ताल्लुक रखने वाली 'हिलैयर झील" की लम्बाई व चौड़ाई बहुत अधिक नहीं है फिर भी अपनी विशिष्टता के कारण देश-दुनिया में उसकी ख्याति है। करीब ढ़ाई सौ मीटर चौड़ी व लगभग छह सौ मीटर लम्बी इस विलक्षण झील में पानी की खासियत की एक लम्बी श्रंखला है। इस झील के चारो ओर रेत का फैलाव है।
      झील चौतरफा लकड़ी के जंगलों से घिरी है। इस जंगल में पेपरबर्क व नीलगिरी के पेड़ों की लम्बी श्रंखला है। इसमें वनस्पतियों के पेड़-पौधे हैं तो वहीं रेत के टीले बहुतायत में दिखेंगे। झील की सबसे बड़ी खासियत-विशेषता उसके पानी का रंग गुलाबी होना है। झील का यह जल किसी खास समय पर गुलाबी नहीं होता बल्कि इसका जल हमेशा गुलाबी रहता है। झील का यह जीवंत गुलाबी रंग स्थायी है। वर्षा या अन्य ऋतुओं का इस झील के गुलाबी पानी पर कोई असर या फर्क नहीं पड़ता।

     इस विलक्षण झील को खोजने वाले मैथ्यू पिलंडर्स थे। वर्ष 1802 में एक अभियान के दौरान उनकी नजर गुलाबी जल वाली इस विलक्षण झील पर पड़ी। शायद इसी लिए इस झील को 'पिलंडर्स पीक" भी कहा जाता है। अभिलेखों में 'गुलाबी रंग की छोटी झील" का उल्लेख मिलता है।
        विशेषज्ञों की मानें तो वर्ष 1803 में पिलंडर्स ने एक बार फिर मध्य द्वीप का दौरा किया। इस बार पिलंडर्स अपने साथ इस गुलाबी झील का पानी पीपों में भर कर ले आये। इसके बाद इस विलक्षण झील के पानी के व्यावसायिक उपयोग पर शोध-खोज प्रारम्भ हुयी। व्यावसायिक संभावनाओं की जांच-पड़ताल में सामने आया कि इस पानी का उपयोग नमक बनाने के लिए भी किया जा सकता है। 
        इस पानी में हलोपलिक नमक व क्रुस्ट्स वैक्टेरिया भी पाये जाते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो 19 वीं सदी में यह क्षेत्र नमक खनन क्षेत्र में था। पश्चिमी आस्ट्रेलिया के प्रशासन ने वर्ष 2012 में द्वीपसमूह नेचर रिजर्व संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया। इस तटीय रेखा को अब मनोरंजक क्षेत्र घोषित करने की दिशा में प्रयास चल रहे हैं। ऐसा नहीं है कि खारा तत्व व  खारा पानी होने के कारण जलीय जीव का कोई संकट होगा। गुलाबी जल में जलीय जीवन भी पर्याप्त तादाद में हैं। इस गुलाबी जल से मनुष्य को कोई खतरा नहीं दिखता। इस झील में गुलाबी बबल गम भी देखे जा सकते हैं तो तटीय रेखा पर नमक की परत आसानी से देखी जा सकती है।
             

खौलते जल वाली डोमिनिका की ब्वॉइलिंग लेक

     'खौलता जल" किसी नदी-झील या जलाशय में अठखेलियां कर रहा हो तो निश्चय ही आश्चर्य होगा। जलधारा तो सामान्यत: 'शीतलता" का संदेश देती है लेकिन विश्व वसुंधरा तो अपने आगोेश में रहस्य-अचरज व आश्चर्य के खजानों की लम्बी श्रंखला छिपाये है। 

     विश्व विरासत का डोमिनिका भी एक विलक्षण एवं अद्भूत स्थल है। डोमनिका के राष्ट्रीय उद्यान में उबलते-खौलते जल की भव्य-दिव्य झील है। खास बात यह है कि मौसम के बदलते तेवर का इस झील के जल पर कोई फर्क नहीं पड़ता। डोमिनिका के मोरेन ट्रोइस पिट्नस राष्ट्रीय उद्यान में स्थित इस 'ब्वॉइलिंग लेक" को देखने आैर इसकी आब-ओ-हवा को देखने-अनुभव करने बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। यह खौलते जल वाली झील एक बड़े दायरे में है।
        इस झील के उपर आम तौर पर भाप के बादल छाये रहते हैं। झील का जल कभी शांत नहीं दिखता-रहता। झील का भूरा व नीला जल सदैव-हमेशा बुदबुदाता दिखता है। ऐसा प्रतीत होता है कि झील का जल खौल रहा हो। विशेषज्ञों की मानें तो इस विलक्षण झील को वर्ष 1870 में देखा गया।
        इस झील के निकट दो अंग्रेज वॉट एवं डाक्टर निकोल्स काम कर रहे थे, तभी उन्होंने इस झील की विलक्षणता को देखा। इसके बाद वर्ष 1875 में वनस्पति शास्त्री एच प्रेस्टोई व डा. निकोल्स ने इस प्राकृतिक घटना पर शोध व अध्ययन प्रारम्भ किया। जल के तापमान को मापा गया तो पाया गया कि इस खौलती झील का जल 197 डिग्री फारेनहाईट तक पाया गया।
          जल के निरन्तर खौलने के कारण झील के केन्द्र बिन्दु के जल का मापन संभव नहीं हो सका। इस झील की गहराई मे काफी उतार-चढ़ाव हैं। विशेषज्ञों की दृष्टि में 1870 के दशक में विलक्षण जल वाली यह झील काफी गहरी थी लेकिन वर्ष 1880 में अचानक एक बड़ा विस्फोट हुआ आैर झील लुप्त हो गयी।
       इस झील के स्थान पर गर्म जल व भाप का फव्वारा निकलने लगा। इसके लम्बे समय बाद यह स्थान एक बार फिर खौलते जल वाली भव्य-दिव्य झील में तब्दील गया। इस बार झील की गहराई कम हो गयी। अब तो हमेशा झील के जल  में एक सतत प्रवाह दिखता है।

  इस झील से विभिन्न प्रकार की गैस का उत्सर्जन होता है तो वहीं भाप के बादल करीब-करीब हमेशा ही दिखते हैं। इस झील का झरनों से भी जुड़ाव है लेकिन जल कहीं भी खौलता ही मिलेगा। खौलने की पृवत्ति वाली इस जलझील में तैरना मौत को दावत देना है। इस झील तक पहंुचने के लिए कोई सीधी सड़क नहीं है बल्कि सड़क से करीब 13 किलोमीटर घूम फिर कर उबड़-खाबड़ रास्तों से होकर जाना होता है। फिर भी बड़ी संख्या में पर्यटक झील की विलक्षणता को देखने-महसूस करने आते हैं। 
          पर्यटकों को नाश्ता व पानी खुद साथ लेकर आना-जाना होता है। इस विरानी घाटी में खतरनाक वृक्षवंश आदि की एक बड़ी व लम्बी चौड़ी श्रंखला है। डोमिनिका की इस झील व आसपास के इलाके के वायु मण्डल में सल्फर की पर्याप्त उपलब्धता है। सल्फर की गंध से इसे महसूस किया जा सकता है। उबलते जल वाली इस झील के प्रारम्भ से अंत तक करीब मोर्न निकोल्स की 3168 फुट लम्बी यात्रा करनी पड़ती है।
        विशेषज्ञ मानते हैं कि इस खौलते जल वाली झील के बेसिन अर्थात तल में पिघला लावा जैसा ज्वलनशील तत्व है। यह लावा गैसों का भी उत्सर्जन करता है। झील का भूरा व नीला जल खाना पकाने के लिए आसानी से उपयोग में लाया जा सकता है। इसे वीरानी की घाटी भी कहा जाता है।
         यह ब्वाइलिंग लेक ज्वालामुखी क्षेत्र में आती है। विशेषज्ञों की मानें तो साहसिक फिल्म निर्माता जॉर्ज कॉरआैनीस रस्सियों के सहारे इस झील को पार करने वाले पहले-प्रथम व्यक्ति बने। खौलते जल वाली यह ब्वाइलिंग लेक वैमांगु घाटी पर स्थित है।

कॉनो क्रिस्टिल्स : इन्द्रधनुषी रंगों के जल वाली नदी

      सौन्दर्य-लालित्य-माधुर्य, रहस्य-रोमांच का कहीं कोई अंत नहीं। जी हां, प्रकृति ने हमेशा दुनिया-धरती को अद्भुत उपहारों से लबरेज रखा। सौन्दर्य व लालित्य मन-मस्तिष्क के तारों को झंकृत कर देता है।

      सौन्दर्य व लालित्य का आकर्षण ही होता है, जो मीलों से पर्यटक एक झलक पाने के लिए भागते-दौड़ते चले आते हैं। 'पानी रे पानी" तेरा रंग कैसा, जिसमें मिला दो लगे उस जैसा.... यह कथ्य-तथ्य व गुनगुनाना नैसर्गिक सौन्दर्य के सामने सटीक नहीं बैठता। वैश्विक मानचित्र-पटल पर देखें तो पानी भी अपने वैशिष्ट्य से देश-दुनिया को आकर्षित करता है। 
         जी हां, कोलम्बिया की नदी 'कॉनो क्रिस्टल्स" अपनी विशिष्टता के कारण देश-दुनिया में आकर्षण का केन्द्र बनी हुयी है। इस नदी का सामान्य पानी जुलाई से नवम्बर की अवधि में इन्द्रधनुषी रंग धारण कर लेता है। कोलम्बिया की इस नदी को दुनिया की सबसे सुन्दर नदी माना जाता है।
     कोलम्बिया के प्रांत मेटा में यह विशिष्ट नदी स्थित है। सेरानिया डे ला मॉकरेना के रुाोत वाली यह एक सहायक नदी है। मूलत: कॉनो क्रिस्टल्स गुयाबेरो नदी की सहायक नदी है। इस नदी व चट्टानों को दुनिया की सबसे पुरानी प्राकृतिक सम्पत्तियों में माना जाता है। 
        यहां के पठार व चट्टानों की श्रंखला करीब 1.2 अरब साल पुराने माने जाते हैं। करीब सौ किलोमीटर लम्बी इस बहुआयामी कॉनो क्रिस्टिल्स नदी को आम तौर पर कोलम्बिया में पांच रंगों की नदी एवं इन्द्रधनुष रंगों वाली नदी भी कहा जाता है। इस नदी में झरनों की एक लम्बी श्रंखला है। 

    इस नदी का जल एक विशेष अवधि-विशेष समय पर हरा, पीला, नीला, लाल व काला हो जाता है। खास तौर इस नदी का जल लाल हो जाता है। 
      विशेषज्ञों की मानें तो इस नदी का जल जुलाई से नवम्बर की अवधि में खास तौर से रंगीन होता रहता है। जल का रंगीन होने के एक बड़ा कारण विभिन्न प्रजातियों के पौधों को माना जाता है। इस नदी में मैकरेनिया क्लाविगेरा प्रजाति के पौधे बड़ी तादाद में हैं। इस पौधे की रसायनिक प्रक्रिया के कारण ही जल का रंग बदलता रहता है। इस नदी की तलहटी खास तौर से कंकड़ व पथरीली चट्टानों वाली है लिहाजा जल की निर्मलता भी अद्वितीय है।
      इस नदी का जल भले ही रंगीन हो लेकिन निर्मलता विशेष रहती है। कोलम्बिया का यह क्षेत्र वर्षा वन क्षेत्र के रुप में जाना-पहचाना जाता है। इसका जल गर्म व शीतल होता है। यह परिवर्तन समय-समय पर होता रहता है। यह नदी शीतल जलचरों के लिए बेहद अनुकूल मानी जाती है। 
         इसमें पक्षियों की करीब चार सौ बीस प्रजातियां पायी जाती है। इतना ही नहीं उभयचरों की भी दस व सरीसृपों की 43 प्रजातियां संरक्षित हैं। 'कॉनो क्रिस्टिल्स नदी" में जलीय पौधों की लम्बी श्रंखला पुष्पित-पल्लवित होती है लेकिन इस खूबसूरत नदी में मछलियां नहीं पायी जातीं।
   इन्द्रधनुषी रंगों वाली कॉनो क्रिस्टिल्स नदी दुनिया के लिए कौतुहल का विषय बनी है। पानी का रंग बदलने के कारण देश-दुनिया के पर्यटकों के लिए कॉनो क्रिस्टिल्स नदी आकर्षण का केन्द्र बनी है।

Sunday 23 July 2017

लोकतक झील : सौन्दर्य का अद्भूत खजाना

        प्राकृतिक खजानों में भी आश्चर्य की कमी नहीं। जी हां, प्रकृति ने जीवकोपार्जन से लेकर आनन्दित जीवन के लिए प्रचुर संसाधन उपलब्ध कराये। 

     उत्तर-पूर्व भारत की 'लोकतक झील" भी प्रकृति का एक सुन्दर खजाना है। शांत सौन्दर्य खासियत वाली यह झील देश-दुनिया में अपनी एक अलग ख्याति रखती है। देश-दुनिया को जहां एक ओर जल प्रदूूषण से दो-चार होना पड़ रहा है तो वहीं यह निराली झील अपनी जल निर्मलता के लिए भी पहचान रखती है। मोती सा साफ व चमकदार जल देख निश्चय ही अठखेलियां करने का मन करे।
     'रहस्य एवं रसायन" का यह अजूबा दुनिया के लिए आश्चर्यचकित करने वाला है। कारण इस विशाल झील में झीलों की भी एक लम्बी श्रंखला दिखती है। लघु झीलों की इस श्रंखला को लघु द्वीप श्रंखला का भी नाम दिया जा सकता है। 'लोकतक झील" को तैरती लघु झील श्रंखला कहा जाये तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी। स्थानीयता में इस झील श्रंखला को फुमदी के नाम से जाना-पहचाना जाता है। 
         करीब चालीस वर्ग किलोमीटर दायरे में विस्तार रखने वाली 'लोकतक झील" अपने आगोश में लघु झील श्रंखला अर्थात फुमदी की असंख्य इकाईयों को रखती है। विशेषज्ञों की मानें तो 'फुमदी" स्वत: विकसित होने वाली श्रंखला है। खास यह है कि यह झील श्रंखला अनवरत विस्तार ले रही है।
        जैविक पदार्थों-मृदा-मिट्टी तथा पेड-पौधों का संयुक्त विकास ही फुमदी का स्वरुप धारण कर लेता है। यह फुमदी इस विशाल झील में कहीं भी अपना आकार ग्रहण करने लगती है। फुमदी के आकार-प्रकार में कोई भी अनावश्यक छेडछाड़ संभव नहीं होती क्योंकि फुमदी आकार लेने के साथ ही मजबूत भी होती जाती है। जिससे तोडना या आकार में बदलाव करना आसान नहीं होता। 
        विशेषज्ञों की मानें तो यह 'रहस्य एवं रसायन" का करिश्मा है। हां, इतना अवश्य है कि आवश्यकता होने पर खास मौसम में फुमदी को जलाया जा सकता है। अब इसे 'रहस्य एवं रसायन" की खासियत ही माना जायेगा कि तोडफोड़ संभव नहीं लेकिन जलाना आसान होता है।
        फुमदी पानी के निरन्तर सम्पर्क में रहने के बावजूद न गलती है आैर न मिटती या पिघलती है। यह फुमदी विशाल झील में यत्र-तत्र-सर्वत्र कहीं भी विचरण करते दिख जायेगी। कारण भूखण्ड अर्थात द्वीप के छोटे-छोटे टुकड़े तैरते रहते हैं। जल प्रवाह के साथ ही फुमदी भी तैरती है।
   विशेषज्ञों की मानें तो फुमदियों की यह श्रंखला केवल उत्तर-पूर्व भारत के इम्फाल में ही दिखेंगी। मणिपुर की राजधानी इम्फाल से करीब चालीस किलोमीटर दूर यह झील स्थित है। इस झील में फुमदियों का अवलोकन एक विशेष एवं अनोखा एहसास है। 
       एहसास का यह अनुभव केवल इम्फाल में ही मिलेगा। देश का यह एक पर्यटन स्थल भी है। फुमदी पर लघु काटेज की व्यवस्था भी होती है। इनमें पर्यटक विश्राम एवं सौन्दर्य का आनन्द ले सकते हैं। दुनिया का यह सबसे बड़ा एवं लम्बा तैरता पार्क माना जाता है। स्थानीयता में इसे किबुल लामिआयो नेशनल पार्क के नाम से भी जाना-जाता है। 
       मणिपुर के विकास में भी इस झील के जल का योगदान माना जाता है। झील के जल से विद्युत परियोजनाएं भी संचालित होती हैं तो वहीं पर्यटन को भी स्थान मिलता है।
        जल विविधिता का भी यह झील अद्भूत संगम है क्योंकि यहां जल पौध की करीब ढाई सौ प्रजातियां एवं पक्षियों की सौ से अधिक प्रजातियां पुष्पित एवं पल्लवित होती हैं। खास बात यह है कि वन्य जीवन की सवा चार सौ से भी अधिक प्रजातियां इस क्षेत्र में स्वच्छंद विचरण करती हैं। भौंकने वाले हिरण भी इसी क्षेत्र में पाये जाते हैं।      

Monday 17 July 2017

विलक्षण पेड़ : चायदानी बाओबाब

       देश-दुनिया अजब-गजब करिश्मों से लबरेज है। बात चाहे पर्यावरण की हो या झील-सरोवर या फिर पर्वत श्रंखला की हो.... करिश्मों की कहीं कोई कमी नहीं। पर्यावरण संवर्धन के साथ साथ पेड़-पौधों में विलक्षणता भी दिखती है। 

     वट वृक्ष सहित अनेक पेड़ों की आैसत आयु की भी कोई सीमा नहीं। मेडागास्कर का एक शानदार पेड़ अपनी खास खूबियों के कारण देश-दुनिया खास चर्चित हो गया। इस शानदार पेड़ की प्रजाति दुनिया में केवल मेडागास्कर में ही पायी जाती है।
              विशेषज्ञों की मानें तो विलक्षण पेड़ की यह प्रजाति एक हजार वर्ष से भी पुरानी है। मेडागास्कर में इस विशेष पेड़ को 'चायदानी बाओबाब" के नाम से जाना पहचाना जाता है। 
        खास बात यह है कि यह विशालकाय पेड़ अस्सी मीटर या इससे भी कहीं अधिक लम्बे होते हैं। इसका आकार नीचे अर्थात पेड़ू से पच्चीस मीटर तक चौड़ा होता है। हालांकि सामान्यत: चौड़ाई दस मीटर होती है लेकिन यह सब पेड़ के आकार प्रकार पर निर्भर करता है। 
        सामान्यत: पेड़-पौधों को पुष्पित-पल्लवित करने के लिए पेड़ों को पानी देना होता है लेकिन 'चायदानी बाओबाब" की खूबियां कुछ अलग हैं। इसका जड़ समूह स्वयं पानी का उत्सर्जन करता है। सूखा के मौसम में यह पानी देता है। सूखे के मौसम में इस पेड़ के आसपास कहीं भी सूखा नहीं दिखेगा क्योंकि इसका जल रुाोत भूमि को अपेक्षित नमी प्रदान करता है। 
      'चायदानी बाओबाब" छाया भी देता है तो फूल भी देता है लेकिन इसके फूलों का जीवन केवल चौबीस घंटे ही रहता है। फूल चाहे तोड़ लिये जायें या फूल पेड़ में ही लगे रहें। इस अवधि के बाद फूल मुरझा जाते हैं। इन फूलों को मेडागास्कर के सौ फ्रैंक नोट में स्थान दिया गया है।
       पर्यावरण विशेषज्ञों की नजर में दुनिया में पेड़ों के समूह के सबसे करिश्माई समूह में से एक है। इसमें वर्ष के अधिकतर समय पत्तियों का आच्छादन रहता है। इसका तना मोटा व फूला हुआ होता है। लिहाजा यह इंसानी आवश्यकताओं के लिए उपयोगी भी साबित होता है।
       आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि कई बार इलाकाई बाशिंदे इसको अपना आशियाना भी बना लेते है। इसके शीर्ष भाग पर ही पत्तियों का आच्छादन होता है। इसका रंग हल्का ब्रााउन एवं सुुनहरा होता है। इसका विशिष्ट रंग भी दर्शकों को खास लुभाता है। 
       इस पेड़ में खुरदरापन कम ही होता है। पेड़ का अधिकतर हिस्सा चमकदार व चिकना होता है। खास बात यह है कि लकड़ी होने के बावजूद ज्वलनशील नहीं है। इसमें आग प्रतिरोधी क्षमता होती है। लिहाजा इसमें आग नहीं लगती है।
       हालांकि मेडागास्कर में अब इस प्रजाति को पर्यावरण की लुप्त प्रजाति में माना जाता है फिर मेडागास्कर में चायदानी बाओबाब पेड़ों की लम्बी श्रंखला खड़ी हैं। खास खूबियों के कारण चायदानी बाआबाब को मेडागास्कर में सर्वाधिक पसंदीदा पेड़ माना जाता है।

                  

चालीस वर्ष में सिर्फ एक बार एक फूल

         देश-दुनिया में अजब गजब करिश्मों-कारनामों की कहीं कोई कमी नहीं। शहर-गांव-देश में गौर करेंगे तो कहीं न कहीं आपको कुछ विलक्षण दिख ही जायेगा। चाहे वन्य जीवन हो या पर्यावरण क्षेत्र हो या फिर सांइस टेक्नॉलॉजी से लबरेज फील्ड ही क्यूं न हो। 

      फूलों का खिलना, फूलों की खुशबू व फूलों का लालित्य-सौन्दर्य किसे अच्छा नहीं लगेगा। पर्यावरण प्रेमी हों या बाग-बगीचा की देखरेख एवं रखरखाव करने वाला कोई माली क्यों न हो, सभी की चाहत होती है कि बाग-बगीचा या लॉन हरे-भरे पौधों से गुलजार रहे।
            फूलों के सौन्दर्य व लालित्य से परिवेश लबरेज रहे। फूलों की खुशबू से परिवेश महकता रहे। पौधों की देखभाल भी बड़ी शिद्दत से की जाती है। कभी  कभी तो पौधों की सेवा व देखभाल करते-करते काफी समय गुजर जाता है लेकिन इतना भी नहीं कि दशक गुजर जायें। 
       पर्यावरण प्रेमी व मालियों की हशरत होती है कि पौधा शीघ्र तैयार हों आैर फूल खूशबू दे। लंदन का रॉयल बोटेनिकल गार्डन विलक्षण पौधों व फूलों के लिए कुछ खास हो गया। लंदन का रॉयल बोटेनिकल गार्डन खास किस्म के विलक्षण फूल को लेकर पर्यावरण प्रेमियों के बीच खास चर्चा में हो गया। 
        खास कारण यह है कि विशेष प्रजाति का एक पौधा एक दो माह या एक दो वर्ष में फूल नहीं देता  बल्कि इस विशेष प्रजाति के पौधे का फूल देखने के लिए चालीस वर्ष इंतजार करना होता है। यह विशेष पौधा चालीस वर्ष में सिर्फ एक बार व एक फूल देता है। 
        खास बात यह है कि फूल खिलने के बाद मुरझा जाता है। बाद में वह मर जाता है। विशेषज्ञों की मानें तो इस विशेष किस्म के फूल व पौधे को देखने बड़ी संख्या में दर्शक रोज आते हैं। बताते हैं कि इस बोटेनिकल गार्डन के मालिक को यह पौधा मैक्सिको के जंगलों में मिला था। 
           देखने में यह पौधा बिल्कुल आम व साधारण पौधों की तरह ही होता है। परिपक्व होने पर इस पौधे की लम्बाई सामान्यत: छह फुट से कुछ अधिक होती है। पूरी तरह से विकसित होने के बाद ही यह फूल देता है। विकसित होने से पहले यह पौधा फूल नहीं देता। फूल देने के साथ ही पौधा दम तोड़ देता है। इन कुछ खासियत के कारण बड़ी संख्या में दर्शक इसकी विलक्षणता को देखने आते हैं।
        

Sunday 16 July 2017

ब्लड फॉल्स लेक: हवा से पानी का रंग लाल

          दुनिया में अजब-गजब करिश्मों की कहीं कोई कमी नहीं। कहीं पेड़-पौधे विचित्र आकार-प्रकार में दिखते हैं तो कहीं जल-पानी अपना रुप-रंग बदलता दिखता है तो कहीं इमारतों की विचित्रता आकर्षित करती है। 

       विक्टोरिया की धरती उत्तरी-पूर्वी अंटार्कटिका में एक विलक्षण लेक अर्थात झील है। इस झील का पानी हवा व आक्सीजन के सम्पर्क में आते ही अपना रंग बदल देता है।
      अंटार्कटिका सहित दुनिया में इस झील को ब्लड फॉल्स लेक अर्थात रक्त झरना के नाम से जाना-पहचाना जाता है। लौह तत्व से परिपूरित इस झील का जल पूरी तरह से खारा है। 
      ब्लड फॉल्स लेक निर्जन स्थान पर लाल रंग के जल प्रपात के तौर पर दिखती है। वस्तुत: यह ग्लेशियर पर स्थित है। दो ग्लेशियर के बीच में स्थित इस झील का जल हवा-आक्सीजन के सम्पर्क में आते ही लाल हो जाता है। 
       इसमें जंग के तत्व साफ दिखते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो बीस लाख सालों से यह विलक्षण जल परिवर्तन अनवरत चला आ रहा है। लौह तत्वों की अत्यधिक मात्रा होने के कारण इसके जल में परिवर्तन लाती रहती हैं। इस पूरे इलाके में बर्फ के छोटे-बड़े झरने व छोटे-बड़े दरारों में दिखते हैं।
         यह जलप्रपात आस्ट्रेलियाई भूवैज्ञानिकों की दृष्टि में पहली बार आया। विशेषज्ञों की मानें तो बर्फ की सतह पर बड़ी तादाद में घुलनशील फेरिक आक्साइड की उपलब्धता होने के कारण विलक्षणतायें दिखती हैं। खारा पानी में लौह तत्वों की उपलब्धता जल को विशिष्ट बनाती है। 

     विशेषज्ञों की मानें तो ब्लड फॉल्स के पानी का परीक्षण किया गया तो डेढ़ दर्जन से अधिक प्रकार पाये गये। इस जल में रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता भी पायी गयी। इसमें कार्बनिक पदार्थों के साथ साथ सल्फेट भी पाया जाता है। 
       वैज्ञानिक एवं इंजीनियर्स के शोध में केमिकल एवं माइक्रोबियल तत्व भी प्रचुरता में पाये गये। चमकदार लाल रंग का यह झरना मैक्मुडों की सूखी घाटी क्षेत्र में है।
        इस स्थान को धरती के सबसे शीतलता-ठंड़ा एवं सबसे दुर्गम स्थानों में माना जाता है। सूक्ष्म जीवों की करीब डेढ़ दर्जन प्रजातियां इस जल में पायी जाती हैं। बताते हैं कि झील के जल का एक बड़ा हिस्सा अभी भी भूगर्भ में है।
         भूवैज्ञानिकों की मानें तो इस तरह के नमकीन पानी के सैकड़ों क्षेत्र भूगर्भ में उपलब्ध होने का अनुमान है।जल की विशिष्टिताओं का लेकर भूजल वैज्ञानिकों में उत्साह भी है तो आश्चर्य भी है। विशेषज्ञों की मानें तो अंटार्कटिका के इस स्थान से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। 
         ब्लड फॉल्स केवल एक विसंगति भर नहीं है बल्कि दुनिया के लिए यह स्थान शोध स्थल है। भूगर्भ जल में नमकीन जल प्रणाली तो वहीं सूखी घाटियां आश्चर्य पैदा करती हैं। 

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