चम्बल का संसद : इंकतेश्वर महादेव
ऐसा नहीं कि शिल्प केवल बुलंद इमारतों एवं अट्टालिकाओं में ही दिखे। चम्बल
को भले ही बीहड़ों की भयावहता एवं दुर्यान्त डकैतों की आश्रय स्थली के तौर
पर देखा जाता हो लेकिन कलाशिल्प-वास्तुशिल्प में भी पीछे नहीं।
मध्यकालीन शिल्पियों एवं वास्तुविद-वास्तु शिल्पकारों ने 'अंदाज-ए-बयां"
कुछ ऐसा अंजाम दिया, जो देश-दुनिया का एक नायाब तोहफा बन गया। मध्यकालीन
शिल्पकारों ने चम्बल की एक विशाल चट्टान को इच्छाशक्ति से विशिष्ट बना
दिया। ब्रिाटिश आर्कीटेक्ट सर हरबर्ट बेकर भी स्थापत्य कला एवं संरचना को
देख अभिभूत हो गए थे।
जी हां, इस
स्थान को खास तौर से 'चम्बल का संसद" की संज्ञा दी गयी है। 'चम्बल का संसद"
कहा भी क्यूं न जाए ? क्योंकि भारतीय संसद का आकार-प्रकार-ढ़ांचा सभी कुछ
इस भव्य-दिव्य देवालय पर आधारित है। मध्य प्रदेश के चम्बल मुरैना में
मितावली पर स्थित है। इकोत्तरसो या इंकतेश्वर महादेव के नाम से ख्याति
प्राप्त यह 'देवालय" भूमि तल से करीब तीन सौ फीट ऊंचाई पर स्थित है।
विशेषज्ञों की मानें तो 'भारतीय संसद" ब्रिाटिश वास्तुविद सर एडविन
ल्युटेन की मौलिक संरचना माना जाता है लेकिन यह भी कटु सत्य है कि इस
देवालय की संरचना भी भारतीय संसद जैसी है। धार्मिक क्षेत्र में इस देवालय
को चौसठ योगिनी शिव मंदिर की मान्यता है। ग्रेनाइट स्टोन (पत्थर) से बना यह
देवालय लालित्य-सौन्दर्य एवं माधुर्य की विलक्षण संरचना है।
भारतीय पुरातत्व विभाग की मानें तो इस देवालय का निर्माण 9 वीं
शताब्दी में हुआ। गोलाकार संरचित इस देवालय के मध्य में मुख्य गर्भगृह
स्थापित है। मुख्य शिवलिंग इसी गर्भगृह में स्थापित है। विशेषज्ञों की
मानें तो सन् 1323 में महाराजा देवपाल ने शिवलिंग स्थापित कराया था। चौसठ
योगिनी का यह भव्य-दिव्य देवालय वास्तुकला एवं एवं गौरवशाली परम्परा के लिए
ख्याति रखता है।
अफसोस, ख्याति
होने के बावजूद मध्य प्रदेश या देश के पर्यटन क्षेत्र में यह स्थान कोई खास
ख्याति नहीं बना सका। विशेषज्ञों की मानें तो तत्कालीन क्षत्रिय महाराजाओं
ने इसका निर्माण कराया था। इस भव्य-दिव्य देवालय में गोलाकार चौसठ कक्ष
संरचित हैं। प्रत्येक कक्ष में एक एक शिवलिंग प्राण प्रतिष्ठित है। इसके
मुख्य परिसर में भव्य-दिव्य शिवमंदिर है।
शिव के साथ ही देवी योगिनियां भी प्राण प्रतिष्ठित हैं। खास बात यह है कि
योगिनियों सहित शिव के इस मंदिर में केवल हिन्दू धर्मावलम्बी ही पूजन-अर्चन
नहीं करते बल्कि अंग्रेज-विदेशी नागरिक भी श्रद्धापूर्वक नतमस्तक होते
हैं।
विशेषज्ञों की मानें तो देश
में चार चौसठ योगिनियों के मंदिर हैं। इनमें दो ओडिशा में आैर दो मध्य
प्रदेश में हैं। यहां सनातन धर्म एवं तांत्रिक क्रियाओं का पूर्ण विश्वास
है। खास यह है कि इस भव्य-दिव्य देवालय में एक सौ एक खम्भों की आकर्षक
श्रखला विद्यमान है। प्राचीनकाल में तांत्रिक अनुष्ठान का यह अत्यंत विशाल
एवं बड़ा केन्द्र था। इस भव्य-दिव्य देवालय तक पहंुचने के लिए करीब दो सौ
सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।