Tuesday 29 August 2017

शिजुओ के गौतम बुद्ध : विश्व के विशालतम

         शिजुओ की पहाड़ी पर 'आश्चर्य" की एक लम्बी श्रंखला विद्यमान है। 'आश्चर्यजनक किन्तु सत्य" जी हां, चाइना की शिजुओ की पहाड़ी अपनी खूबियों के लिए देश-दुनिया में विख्यात है। 

     इन खूबियों व आश्चर्यजनक कलाकृतियों में भगवान गौतम बुद्ध की विशाल प्रतिमा विद्यमान है। विशेषज्ञों की मानें तो 'लेशान के विशालकाय बुद्ध" दुनिया के विलक्षण बुद्ध हैं। चाइना के लेशान की पहाड़ियों में पत्थर पर उत्कीर्ण भगवान गौतम बुद्ध की प्रतिमा करीब 71 मीटर अर्थात 233 फुट ऊंची है। इस विशालकाय प्रतिमा को आठवीं शताब्दी में तैयार किया गया था। प्रतिमा की बनावट ऐसी है, जैसे प्रतिमा तीन नदियों को निहार रही हो।
      इसका चेहरा माउंट एमेई की तरफ है। माउंट एमेई बौद्ध धर्मावावलम्बियों का अति पवित्र धार्मिक स्थल है। निर्माण के समय इस स्थान पर तेरह मंजिला लकड़ियों का एक ताकतवर स्ट्रक्चर बनाया गया था। यहां सोने का मढ़ाव भी है। युआन राजवंश के शासनकाल में मंगोल आक्रमणकारियों ने इसे नष्ट कर दिया था। 
     लेशान की यह विशाल प्रतिमा आसन में विद्यमान है। चेहरे पर सौम्यता तो शारीरिक बलिष्ठता परिलक्षित होती है। यह तीन नदियों के संगम स्थल पर विद्यमान है। यह तीन नदियां मिन नदी, क्वीनगई नदी व दादू नदी हैं। संगम का यह स्थान चाइना के लेशान शहर में है। यह सिचुआन प्रांत के पूर्व में है। देश दुनिया के प्राकृतिक सौन्दर्य वाले स्थानों में जाना जाता है।
      वर्ष 1996 के दिसम्बर में यूनेस्को ने भगवान गौतम बुद्ध के इस स्थान को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया है। विशेषज्ञों की मानें तो इस प्रतिमा का निर्माण 90 वर्ष से भी अधिक समय में पूर्ण हो सका। निर्माण में असंख्य कारीगरों ने सहयोग किया था। दुनिया की यह सबसे बड़ी बुद्ध प्रतिमा के तौर पर पहचान रखती है।
     खास यह है कि पत्थर पर खुदाई से संरचित इस प्रतिमा के साथ ही स्थल पर बौद्ध धर्म की कविता, गीत व कहानी भी चित्रित हैं। यह अति शांतिपूर्ण स्थल है। यह प्रतिमा 233 फुट ऊंची है तो ऊंगलियां लगभग 27 फुट की हैं। कंधों की चौड़ाई 24 मीटर अर्थात 79 फुट है। विशेषज्ञों की मानें तो इस धार्मिक एवं कलात्मक परियोजना की शुरुआत एक साधु हाई टॉग ने की थी।
        साधु ने भावनाओं के अनुरूप इस स्थल का चयन प्रतिमा के लिए किया तो पूरी शिद्दत से निर्माण भी पूर्ण हुआ। साधु ने परियोजना का कार्य प्रारम्भ कराया लेकिन पूूर्ण नहीं करा सका लेकिन बाद में साधु हाई टॉग के शिष्य श्रंखला ने इस परियोजना को पूर्ण आकार दिलाया था। इसमें 90 वर्ष का परिश्रम समाहित है। यह स्थापत्य कला का विश्व का अनुकरणीय उदाहरण है।
      इसमें वास्तुशास्त्र भी दृष्टिगत होता है तो वहीं कौशल्य भी वैशिष्टय स्थान रखता है। जलनिकासी के पर्याप्त प्रबंध दिखते हैं। दुनिया में इसकी खास ख्याति है। बुद्ध प्रतिमा के नवीकरण के लिए देश दुनिया ने व्यापक स्तर पर ध्यान दिया। चाइना सरकार ने लगभग 1963 में मरम्मत का कार्य प्रारम्भ किया था जिससे रखरखाव न होने के कारण क्षतिग्रस्त हुए हिस्से का सुधार किया जा सके। अब रखरखाव यूनेस्को के विशेषज्ञों की देखरेख में किया जाता है।  

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