Friday 27 October 2017

रेसट्रैक प्लाया : प्राकृतिक सौन्दर्य पर बेहद खतरनाक

  सामान्यत: प्रकृति की गोद में सौन्दर्य का बोध होता है लेकिन दुनिया के असंख्य स्थल इस मिथक या भ्रम को तोड़ते दिखते हैं।

    जी हां, अमेरिका रेसट्रैक प्लाया दुनिया का सबसे खतरनाक स्थान माना जाता है। सामान्यत: इसे दुनिया में डेथ वैली के तौर पर पहचाना-जाना जाता है। 
   दुनिया के सबसे गर्म स्थानों में शुमार होने वाले 'रेसट्रैक प्लाया" में कहीं कोई जन-जीवन नहीं है। 'रेसट्रैक प्लाया" तो छोडिए आसपास भी कहीं कोई जनजीवन नहीं दिखता। यहां कहीं कुछ यदि चलायमान है तो 'पत्थर" । 
   जी हां, सौन्दर्य बोध से परिपूरित 'रेसट्रैक प्लाया" में पत्थर स्वत: चलायमान होते हैं। रेसट्रैक प्लाया डेथ वैली में मौजूद पत्थर श्रंखलाओं को कभी एकल तो कभी समूह में चलते देखा व महसूस किया जा सकता है। यह दशा-दिशा अचरज-अजूबा या आश्चर्य से कम नहीं लेकिन यह हकीकत है। अमेरिका का रेसट्रैक प्लाया डेथ वैली देश-दुनिया में चर्चा एवं कौतुहल का विषय बना हुआ है।
   यह डेथ वैली अमेरिका का एक अतिविशालतम रेगिस्तान है। यह पूर्वी कैलिफोर्निया इलाके में आता है। यह मोजावे रेगिस्तान का हिस्सा है। उत्तरी अमेरिका के सबसे निचले शुष्क एवं गरम स्थानों में से एक है। समुद्र तल से करीब 282 फुट नीचे आंकलित यह इलाका अपनी विशिष्टताओं के कारण ख्याति रखता है। विशेषज्ञों की मानें तो डेथ वैली पश्चिमी गोलार्ध में सर्वाधिक तापमान का रिकार्ड रखता है। 
  खास यह है कि पत्थर श्रंखला तापमान के दबाव एवं रसायनिक कारणों से स्वयं कम्पित एवं चलायमान होती है। कई बार यह पत्थर श्रंखला या एकल पत्थर हमलों की मुद्रा में आ जाते हैं। ऐसा तापमान के दबाव एवं रसायनिक कारणों से होता है।
     ऐसे में बचाव करना असंभव हो जाता है। लाजिमी है कि पत्थरों के हमलों से जान जोखिम में पड़ जाती है। कैलिफोर्निया एवं नेवादा की सीमा वाले इलाके में स्थित यह डेथ वैली अपने आगोश में प्रकृति का सौन्दर्य में समेटे है।
    इस डेथ वैली को अमेरिका में नेशनल पार्क का दर्जा भी हासिल है। पूर्व दिशा में अमार्गोसा रेंज है तो पश्चिम में पैनामिंट रेंज है। सिल्वानिया एवं आउल्सहेड की पर्वत श्रंखला भी उत्तर एवं दक्षिण सीमाओं पर है। करीब 7800 वर्ग किलोमीटर के दायरे वाले इस खतरनाक डेथ वैली को देश-दुनिया के बाशिंदे नजदीक से देखने की इच्छा रखते है लेकिन खतरों को भांप कर दूर ही रहना मुनासिब समझते हैं। 
     विशेषज्ञों की मानें तो डेथ वैली में पत्थरों की शक्ल में 'सॉल्ट पैन्स" फैले हुये हैं। डेथ वैली में यह 'सॉल्ट पैन्स" रसायनिक एवं प्राकृतिक देन है। भूवैज्ञानिकों की मानें तो यहां कभी झीलों का इलाका था लेकिन समुद्री झीलों का यह इलाका धीरे-धीरे सूखता गया। काफी लम्बे समय में यह रेगिस्तान में तब्दील हो गया।

Thursday 26 October 2017

शिजुओ के गौतम बुद्ध : विश्व के विशालतम

   शिजुओ की पहाड़ी पर 'आश्चर्य" की एक लम्बी श्रंखला विद्यमान है। 'आश्चर्यजनक किन्तु सत्य" जी हां, चाइना की शिजुओ की पहाड़ी अपनी खूबियों के लिए देश-दुनिया में विख्यात है।

   इन खूबियों व आश्चर्यजनक कलाकृतियों में भगवान गौतम बुद्ध की विशाल प्रतिमा विद्यमान है। विशेषज्ञों की मानें तो 'लेशान के विशालकाय बुद्ध" दुनिया के विलक्षण बुद्ध हैं। चाइना के लेशान की पहाड़ियों में पत्थर पर उत्कीर्ण भगवान गौतम बुद्ध की प्रतिमा करीब 71 मीटर अर्थात 233 फुट ऊंची है। 
     इस विशालकाय प्रतिमा को आठवीं शताब्दी में तैयार किया गया था। प्रतिमा की बनावट ऐसी है, जैसे प्रतिमा तीन नदियों को निहार रही हो। इसका चेहरा माउंट एमेई की तरफ है।
     माउंट एमेई बौद्ध धर्मावावलम्बियों का अति पवित्र धार्मिक स्थल है। निर्माण के समय इस स्थान पर तेरह मंजिला लकड़ियों का एक ताकतवर स्ट्रक्चर बनाया गया था। यहां सोने का मढ़ाव भी है। युआन राजवंश के शासनकाल में मंगोल आक्रमणकारियों ने इसे नष्ट कर दिया था। 
     लेशान की यह विशाल प्रतिमा आसन में विद्यमान है। चेहरे पर सौम्यता तो शारीरिक बलिष्ठता परिलक्षित होती है। यह तीन नदियों के संगम स्थल पर विद्यमान है। यह तीन नदियां मिन नदी, क्वीनगई नदी व दादू नदी हैं। संगम का यह स्थान चाइना के लेशान शहर में है। यह सिचुआन प्रांत के पूर्व में है। 
     देश दुनिया के प्राकृतिक सौन्दर्य वाले स्थानों में जाना जाता है। वर्ष 1996 के दिसम्बर में यूनेस्को ने भगवान गौतम बुद्ध के इस स्थान को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया है। विशेषज्ञों की मानें तो इस प्रतिमा का निर्माण 90 वर्ष से भी अधिक समय में पूर्ण हो सका। निर्माण में असंख्य कारीगरों ने सहयोग किया था। 
    दुनिया की यह सबसे बड़ी बुद्ध प्रतिमा के तौर पर पहचान रखती है। खास यह है कि पत्थर पर खुदाई से संरचित इस प्रतिमा के साथ ही स्थल पर बौद्ध धर्म की कविता, गीत व कहानी भी चित्रित हैं। यह अति शांतिपूर्ण स्थल है। यह प्रतिमा 233 फुट ऊंची है तो ऊंगलियां लगभग 27 फुट की हैं। कंधों की चौड़ाई 24 मीटर अर्थात 79 फुट है। 
    विशेषज्ञों की मानें तो इस धार्मिक एवं कलात्मक परियोजना की शुरुआत एक साधु हाई टॉग ने की थी। साधु ने भावनाओं के अनुरूप इस स्थल का चयन प्रतिमा के लिए किया तो पूरी शिद्दत से निर्माण भी पूर्ण हुआ। साधु ने परियोजना का कार्य प्रारम्भ कराया लेकिन पूूर्ण नहीं करा सका लेकिन बाद में साधु हाई टॉग के शिष्य श्रंखला ने इस परियोजना को पूर्ण आकार दिलाया था। 
    इसमें 90 वर्ष का परिश्रम समाहित है। यह स्थापत्य कला का विश्व का अनुकरणीय उदाहरण है। इसमें वास्तुशास्त्र भी दृष्टिगत होता है तो वहीं कौशल्य भी वैशिष्टय स्थान रखता है। जलनिकासी के पर्याप्त प्रबंध दिखते हैं। दुनिया में इसकी खास ख्याति है।
       बुद्ध प्रतिमा के नवीकरण के लिए देश दुनिया ने व्यापक स्तर पर ध्यान दिया। चाइना सरकार ने लगभग 1963 में मरम्मत का कार्य प्रारम्भ किया था जिससे रखरखाव न होने के कारण क्षतिग्रस्त हुए हिस्से का सुधार किया जा सके। अब रखरखाव यूनेस्को के विशेषज्ञों की देखरेख में किया जाता है।  

Wednesday 25 October 2017

स्नेक आइलैण्ड : सांपों की सल्तनत

 'सांपों की सल्तनत" जी हां, दुनिया में एक स्थान ऐसा भी है, जहां सांपों की सल्तनत अर्थात हुकूमत चलती है। आश्चर्य ही होता है कि कहीं पशु-पक्षियों-जीव-जन्तुओं की हुकूमत हो। 

  यह कोई कपोल कल्पना या किवदंती नहीं बल्कि हकीकत है। ब्राजील दुनिया में अपनी खूबसूरती-सौन्दर्य के लिए जाना जाता है लेकिन ब्रााजील की धरती पर जहरीलापन भी कम नहीं। ब्राजील का 'स्नेक आइलैण्ड" असंख्य सर्प प्रजातियों से अच्छादित है।
    धरती हो या पेड़-पौधे सभी स्थान पर सांप-सर्प मिल जायेंगे। दुनिया की शायद ही कोई सर्प प्रजाति हो जो यहां न मिले। सांप खतरनाक भी आैर खूंखार भी। खंूखार ऐसे जिसे देख कर ही इंसान की मौत हो जाये। खतरनाक ऐसे जिसके दंश से पल-दो पल की ही जिन्दगी शेष रहे। 
    विशेषज्ञों की मानें तो साओ पौलो से करीब 93 मिल दूर यह एक समुद्री टापू है। इसे ब्राजील सहित दुनिया में 'स्नेक आइलैण्ड" के नाम से जाना जाता है। विशेषज्ञों की मानें तो इस 'स्नेक आइलैण्ड" में सर्प संख्या का घनतत्व अत्यधिक है। आैसत हर वर्ग मीटर में पांच से छह सर्प पाये जाते हैं।
    हालात यह हैं कि एक बेड के स्थान पर छह से आठ या दस सांप आसानी से पाये जाते हैं। स्नेक आइलैण्ड के सर्प अत्यंत जहरीले अर्थात दुनिया के सबसे जहरीले सांपों में गिने जाते हैं। सर्प दंश से कोई भी व्यक्ति बमुश्किल दस से पन्द्रह मिनट जिन्दा रह पाता है।
    विशेषज्ञों की मानें तो ब्राजील में होने वाली मौतों के लिये सर्प दंश ही मुख्य कारक है। ब्राजील में 90 प्रतिशत मौतें तो सर्प दंश से होती हैं। इस आइलैण्ड का क्षेत्रफल करीब साढ़े चार लाख वर्गमीटर है। सांपों की संख्या बीस लाख से अधिक आंकलित है। इनको गोल्डन पिटवाइपर सांप के तौर पर जाना जाता है। 
   इस आइलैण्ड में शायद ही कोई ऐसी जगह हो जहां सांप न हो। कहीं जमीन पर सांप चलते दिखेंगे तो कहीं पेड़ पर लटके दिख जायेंगे तो कहीं चट्टान में छिपे होंगे। हालांकि ब्राजील प्रशासन की ओर इस विलक्षण टापू में आम व्यक्तियों का प्रवेश पूूर्णतय: वर्जित है।
    ब्राजीलियन नेवी ने क्षेत्र को प्रतिबंधित कर रखा है लेकिन ऐसा नहीं है कि कोई इस आइलैण्ड में नहीं जाता। सर्प विशेषज्ञ एवं शोधार्थी निरन्तर 'स्नेक आइलैण्ड" आते-जाते है तो कुछ प्रवास भी करते हैं। सामान्तय इस आइलैण्ड में किसी के जाने की हिम्मत नहीं पड़ती। 
    इस आइलैण्ड का नाम 'इलहा डी क्विमाडा ग्रांड" है लेकिन सामान्यत इसे 'स्नेक आइलैण्ड" के नाम से जाना जाता है। यह पूरा क्षेत्र बंजर, चारागाह व चट्टानों से आच्छादित है। इस आइलैण्ड में इल्हा दा वनस्पति प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
    वनस्पतियों के साथ साथ पक्षियों की दर्जनों प्रजातियां कोलाहल करती रहती हैं। खास यह है कि पशु-पक्षियों व वनस्पतियों तथा सांपों की आबादी को एक दूसरे से कहीं कोई खतरा नहीं। यह वन क्षेत्र वर्षा क्षेत्र के लिए भी जाना जाता है। स्नेक आइलैण्ड के चौतरफा समुद्री क्षेत्र होने के कारण शीतलता की अनुभूति होती है।

Tuesday 24 October 2017

आस्ट्रेलिया की मुर्रे नदी : विलक्षण खनिज सम्पदा

     आस्ट्रेलिया की 'मुर्रे नदी" दुनिया के अद्भूत खनिज भण्डारण के लिए ख्याति प्राप्त है। खनिज सम्पदा की बात हो या फिर जलजीवन को संरक्षित करने का विषय हो.... 'मुर्रे नदी" का कहीं कोई सानी नहीं। 

   लाल पत्थरों के शिलाखण्डों पर प्रवाहित यह नदी वैसे तो आस्ट्रेलिया की लाइफ लाइन मानी जाती है लेकिन वहीं दुनिया की शीर्ष एवं बड़ी नदियों में श्रंखलाबद्ध है। करीब 3750 किलोमीटर लम्बी 'मुर्रे नदी" को भी जलीय परिवर्तन के दंश झेलने पड़े। 
   सागर में विलय होने से पहले आस्ट्रेलिया की इस विलक्षण नदी का जल कभी मीठा तो कभी साधारण हो जाता है। विशेषज्ञों की मानें तो पर्यावरणीय एवं आैषधीय पौधों का प्रभाव सीधे नदी के जल पर पड़ता है। पर्यावरणीय एवं आैषधीय पेड़-पौधों के घषर्ण से जल के स्वाद में परिवर्तन स्वाभाविक है।
     आस्ट्रेलिया के ऊंचे व शीर्ष पहाड़ों के बीच से गुजरने वाली 'मुर्रे नदी" विक्टोरिया, न्यू साउथ वेल्स, दक्षिण आस्ट्रेलिया के क्वींसलैण्ड आदि इलाकों को आच्छादित करती है। विशेषज्ञों की मानें तो मुर्रे नदी को आस्ट्रेलिया में स्वादिष्ट एवं स्वास्थ्यवर्धक खाद्य कटोरा के तौर पर माना जाता है। 
    कारण इस नदी में मछलियों की असंख्य एवं विलक्षण प्रजातियां उपलब्ध हैं। आस्ट्रेलिया के 58 प्रतिशत कृषि क्षेत्र की सिंचाई मुर्रे नदी व इसकी सहायक नदियों से होती है। दुनिया की प्रसिद्ध मछलियां इस विलक्षण नदी की रौनक एवं शोभा हैं। मछलियों की प्रजातियों में मर्रे कॉड, ट्राउंड कॉड, गोल्डन बसेरा, मैक्वेरी बसेरा, चांदी बसेरा, भूरी ट्राउट, मछली पूंछ कैटफिश, आस्ट्रेलिया गलाना, क्रेफिश, झींगा आदि हैं तो वहीं चूहों की विलक्षण प्रजातियां इस नदी में पायी जाती हैं। 
     चूहों की यह प्रजातियां जल अर्थात पानी में ही रहती हैं। नदी का जल सामान्य तो तलहटी लाल रंग की दिखती है। आस्ट्रेलिया में इसे देश की सांस्कृतिक नदी की तरह मान्यता है। कारण यह लाइफ लाइन के साथ साथ खनिज व जलजीवन का पर्याप्त रुाोत है। 
    आस्ट्रेलिया में इसे मुर्रे डार्लिंग के नाम से जाना-पहचाना जाता है। नदी को भी संक्रमण के झटके लगे लेकिन 90 प्रतिशत निदान हो गया। इसे आस्ट्रेलिया में एक प्राकृतिक चमत्कार के तौर पर देखा जाता है। खास यह है कि नदी का एक किनारा अधिसंख्य इलाकों में लाल पत्थर श्रंखला से लबरेज दिखता है तो दूसरा किनारा पर्यावरण से भरपूर दिखता है।
     नदी के किनारों में प्राचीन जीवाश्म चूना पत्थरों का अपार भण्डारण है। आस्ट्रेलिया में इस खनिज सम्पदा का कहीं कोई अंत नहीं। यूं कहा जाये कि मुर्रे नदी आस्ट्रेलिया का सौन्दर्य है तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी।

Monday 23 October 2017

वाटर स्पाउट्स : विलक्षणता का एक आयाम

    जल केवल जीवन ही आनन्द का परिचायक भी है। साफ सुथरा पानी पियेंगे तो प्यास बुझेगी। शारीरिक आवश्यकताओं की प्रतिपूर्ति होगी लेकिन पानी की अठखेलियां तन-मन-मस्तिष्क प्रफुल्लित-पुलकित अवश्य होगा। मशीनी रैन डांस-मशीनी वाटर डांस तो मेगाटाउन्स में देखने को मिल जायेंगे लेकिन नेचुरल वाटर डांस देखने के लिए नेचर की गोद में ही जाना होगा।

 'वाटर स्पाउट्स" से ख्याति जल नृत्य अर्थात वाटर डांस नीदरलैण्ड, आस्ट्रेलिया व कतर आदि में देखे जा सकते हैं लेकिन फ्लोरिडा का वाटर स्पाउट्स विलक्षण है।
      सामान्यत: धूूली बवंडर भयभीत करने वाले अथवा डरावने होते हैं लेकिन फ्लोरिडा के जल बवंडर रोमांचित करने वाले होते हैं। इसे जल स्तम्भ, जलव्रज, जलवज्र, बवंडर या चक्रवात कुछ भी कह सकते हैं। यह जल से बने स्तम्भ के आकार के दिखते हैं। मुख्यत: इस तरह के जलस्तम्भ यूरोप एवं अंटार्कटिका में बनते-बिगड़ते दिखते हैं।
    दुनिया के अन्य देशों व अन्य स्थानों पर भी दिखते हैं किन्तु अत्यंत मुश्किल से। फ्लोरिडा में 'वाटर स्पाउट्स" समुद्री इलाके में आम हैं। 'वाटर स्पाउट्स" किसी भी क्षण में मनमोह लेते हैं। कहीं यह तीन चरणों में होता है तो कहीं पांच चरणों में दिखता है।
    'वाटर स्पाउट्स" एक गोला अंधकार से युक्त होता है तो दूसरा गोला घूमता सा प्रतीत होता है। एक अन्य में यह अंगूठी की भांति दिखता है। एक अन्य में यह एक जल स्तम्भ के शक्ल में दिखता है। अन्तत: कुछ पलों में यह सब विलुप्त हो जाता है।
    'वाटर स्पाउट्स" करीब दो किलोमीटर के दायरे में दिखते हैं। हालांकि यह दायरा कम या अधिक भी हो सकता है। जलवायु परिवर्तन या अनुकूल वातावरण का प्रभाव भी 'वाटर स्पाउट्स" पर पड़ता है। खास बात यह है कि 'वाटर स्पाउट्स" में बवंडर जैसे गुण नहीं होते। यह सूखे मौसम में भी बनते हैं। 
   हालांकि इनका जीवन चक्र अत्यधिक लघु अर्थात बीस मिनट के आसपास ही होता है। यह एक प्रकार से बादलों के आवेग-आवेश से बनते हैं। बादलों का आवेग नीचे आने लगता है तो जल अर्थात पानी की क्रिया अथवा क्रीड़ा दिखने लगती है।
   मुख्यत: यह जल वाले क्षेत्रों में ही बनते बिगड़ते हैं। कारण जल को आसानी से घूमने का मौका मिल जाता है। फ्लोरिडा के जलवायु में 'वाटर स्पाउट्स" निरन्तर दिखते हैं।

Wednesday 18 October 2017

इग्वाजू नदी : पौने तीन सौ झरनों की श्रंखला

   'सौन्दर्य का खजाना" निश्चय ही मन-मस्तिष्क को तारो-ताजा एवं प्रफुल्लित कर देता है। देश-दुनिया में प्राकृतिक खजाना की कहीं कोई कमी नहीं।

   देश-दुनिया के लिए यह जहां एक ओर राजस्व का बड़ा माध्यम है तो वहीं दूसरी ओर पर्यटकों के विशेष आकर्षण के केन्द्र भी हैं। इनमें अद्भूत एवं विलक्षणता से परिपूरित दृश्य मन को लुभाते हैं। अर्जेंटीना एवं ब्रााजील सीमा की 'नदी इग्वाजू" अपने प्राकृतिक सौन्दर्य से देश-दुनिया के आकर्षण का केन्द्र बनी है। देश-दुनिया के लाखों पर्यटक इस नदी की विलक्षणता की एक झलक पाने के लिए लालायित दिखते हैं। 
   दुनिया के सात प्राकृतिक चमत्कारों में   'इग्वाजू नदी" भी शामिल है। नदी के झरनों को देख कर कौतुहल होता है कि आखिर यह भी है ?। नदी क्षेत्र में एक स्वप्न सा लगता है क्योंकि एक साथ एक स्थान पर पौने तीन सौ झरनों को गिरते देखना किसी स्वप्न से कम नहीं लगता। झरनों का यह समूूह करीब तीन किलोमीटर के दायरे में फैला है।
    एक साथ झरनों के समूह-श्रंखला को देखना किसी रोमांच से कम नहीं होता। वर्ष 1986 में झरनों की इस श्रंखला को यूनेस्को ने वल्र्ड हेरिटेज क्षेत्र घोषित किया है। झरनों के इस क्षेत्र को मिसिओनेस के नाम से जाना जाता है। अर्जेंटीना को दुनिया में सर्वाधिक प्राकृतिक सौन्दर्य वाला देश माना जाता है। इन प्राकृतिक सौन्दर्य में झरनों की यह श्रंखला भी है। इग्वाजू नदी का यह झरना श्रंखला विश्व में प्रसिद्ध है।
    अर्जेंटीना ने इस क्षेत्र को राष्टीय उद्यान क्षेत्र घोषित किया है। अर्जेंटीना का सौन्दर्य से परिपूरित यह क्षेत्र करीब बीस किलोमीटर के दायरे में है जबकि झरना श्रंखला करीब तीन किलोमीटर दायरे में है। इग्वाजू नदी करीब 1200 किलोमीटर की यात्रा तय करती है। इसका उद्भव ब्राजील से है तो अर्जेंटीना में इसकी खूबसूरती दिखती है। नदी की इस यात्रा में पठार श्रंखला की समृद्धता दिखती है। 
    बलुआ पत्थर श्रंखला की इस क्षेत्र में बहुलता है। झरना एवं नदी क्षेत्र में परतों एवं दरारों की श्रंखला दिखती है। यह प्राकृतिक सौन्दर्य का अद्भूत दृश्य होता है। भौगोलिक दशा ऐसी है कि झरना एवं नदी के जल प्रवाह से भीषण एवं भयंकर गर्जना सुनाई देती है।
      ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे कोई राक्षस गर्जना कर रहा हो। किवदंती है कि इस नदी में बोई नाम का सांप रहता है। यह सांप नित्य वर्ष आदिवासी समुदाय से एक आैरत की बलि लेता था। जिससे एक भय भी था। एक बार एक बहादुर महिला गुआरानी अबोरीगिन ने इस मिथक को तोड़ दिया। गुआरानी ने नदी से संघर्ष कर खुद को बचा लिया। वस्तुत: जल प्रवाह में महिला का बलिदान हो जाता था।
   सौन्दर्य बोध को रेखांकित करने वाला झरना श्रंखला चांद की खूूबसूरती का अवलोकन कराता है। झरना श्रंखला के बीच चांद ऐसे दिखता है, जैसे चांद झरनों के साथ चल रहा है। झरना श्रंखला को देखने के लिए नदी के उपर एक शानदार पुल भी बना है।
  जिससे पर्यटक-दर्शक झरनों को आैर अधिक निकट जाकर सौन्दर्य का आनन्द ले सकते है। पर्यटन की दृष्टि आवागमन के संसाधन विकसित किये गये हैं।

Tuesday 17 October 2017

कुलधरा : विलक्षण गांव, फिर बस नहीं सका

    देश-दुनिया में अद्भुत विलक्षण संरचनाओं की कहीं कोई कमी नहीं। श्राप ने हिन्दुस्तान के एक गांव की दशा-दिशा बदल दी तो गांव पुरातत्व विभाग की सम्पत्ति बन गया तो वहीं विलक्षणता से देश-दुनिया के विशेषज्ञ आश्चर्यचकित हैं। 

    जी हां, आश्चर्य यह कि आखिर कुछ ही पलों में पांच हजार से अधिक परिवारों की आबादी कहां लुप्त हो गयी। राजस्थान के जैसलमेर से करीब बीस किलोमीटर की दूरी पर गांव कुलधरा है। इस विलक्षण गांव से रात में अचानक आबादी गायब-लुप्त हो गयी। आखिर इस गांव की आबादी कहां गयी, किसी को कुछ भी पता नहीं।
     राजस्थान के कुलधरा गांव में आज भी छह सौ से अधिक घर-घरौंदे अस्तित्व में दिखते हैं लेकिन सब कुछ विरान है। विशेषज्ञों की मानें तो सालों साल  से यह गांव विरान पड़ा है। मूलत: यह गांव राजस्थान के पालीवाल ब्रााह्मण परिवारों का है। कभी आर्थिक सम्पन्नता से भरपूर अब मरघट जैसी दशा में है।
    विशेषज्ञों की मानें तो कुलीन ब्रााह्मण परिवारों ने जैसलमेर आैर आसपास के इलाकों में चौरासी गांव विकसित किये। यह विकास पांच सौ वर्ष में किया गया। जैसलमेर रियासत के दीवान सालिम सिंह के अत्याचार-उत्पीड़न के विरोध में बाशिंदों ने गांव से पलायन किया। पालीवाल परिवारों पर कर एवं लगान की बेइंतहां बढ़ोत्तरी की गयी। जिससे खेती व व्यापार सब कुछ चौपट हो गया।
    पालीवाल समुदाय दीवान के अत्याचारों से अति दुखी था। हद तो तब हो गयी, जब दीवान ने पालीवाल समुदाय की एक युवती को हासिल करना चाहा। बस इसके बाद समुदाय ने विरोध कर दिया। पालीवाल समुदाय ने तय किया कि सम्मान व इज्जत पर चोट बर्दास्त नहीं। अन्तोगत्वा, गांव कुलधरा के बाशिंदों ने रात में अचानक गांव खाली कर दिया। साथ ही श्राप भी दिया कि अब इस गांव में कोई बस नहीं पायेगा। गांव छोड़ने से पहले कोठारी गांव में पंचायत की।
    निर्णय के मुताबिक पालीवाल समुदाय ने गांव खाली कर दिया। आश्चर्य यह कि कुलधरा गांव का बाशिंदा पालीवाल समुदाय आखिर कहां गया क्योंकि गांव से पलायन के बाद समुदाय का कहीं कोई अता-पता नहीं चला। विशेषज्ञों की मानें तो इन गांव को भले ही सात सौ-आठ सौ साल पहले बसाया गया हो लेकिन गांव का निर्माण वैज्ञानिक तौर-तरीके से किया गया था क्योंकि राजस्थान में जहां एक ओर रेगिस्तान की तपिश महसूस की जाती है वहीं इस गांव के घरों में शीतलता का अनुभव होता है।
    घरों के भीतर पानी के कुण्ड-कुंआ, ताक-चाक आैर सीढ़ियां बेहतरीन हैं। घरों की बनावट ऐसी कि हवा चले तो बांसुरी की तान सुनाई दे। घरों में शीतलता का अनुभव। राजस्थान के रेगिस्तान में खेती का होना, पालीवाल समुदाय की समृद्धि का रहस्य रहा। आखिर रेगिस्तान में खेती कैसे होती थी ? विशेषज्ञों की मानें तो पालीवाल समुदाय के अचानक पलायन के बाद आसपास के बाशिंदों ने गांव में बसने की कोशिश की लेकिन कोई कामयाब नहीं हो सका। 
    श्राप का दुष्प्रभाव आज भी दिखता है। कुलघरा गांव एक अवशेष के तौर पर आज भी देखा जा सकता है। विलक्षणता को देखने देश-विदेश के पर्यटक बड़ी संख्या में आते है। यह गांव अब पुरातात्विक विभाग संरक्षित है।

Monday 16 October 2017

फायरफॉल : प्राकृतिक करिश्मा

   देश-दुनिया में करिश्मा-चमत्कारों की कहीं कोई कमी नहीं। करिश्मा-चमत्कार को प्राकृतिक आभा का उद्भव कहें तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी। 

    कल्पना करें कि किसी पहाड़ के झरना से पानी के स्थान पर आग का प्रवाह हो रहा हो तो शायद काफी कुछ अचरज सा लगेगा लेकिन इस दुनिया में ऐसा भी है। पहाड़ से आग का झरना देख कर कहीं अचरज होगा तो वहीं दहशत भी दिखेगी। 
    अमरीका के कैलिफोर्निया स्थित केयोजमाइट राष्ट्रीय उद्यान में पहाड से गिरने वाला झरना देख कर कहीं न कहीं सहम जायेंगे लेकिन इस अद्भूत झरना की एक झलक पाने के लिए लाखों पर्यटक अमेरिका आते-जाते हैं। 
     इसे आग उगलने वाले पहाड को 'फायरफॉल" के नाम से जाना-पहचाना जाता है। इस राष्ट्रीय उद्यान से करीब दो हजार फुट की ऊंचाई वाला यह पहाड सौन्दर्य का अनुपम उदाहरण बना है। वस्तुत: यह पहाड आग नहीं उगलता बल्कि आग उगलने का करिश्मा रोशनी का करिश्मा है। 
     सूरज की रोशनी से ऐसा आभास होता है कि पहाड से निकलने वाला पानी नहीं आग का झरना है। इसके सौन्दर्य का सहज आंकलन इसी से किया जा सकता है कि वर्ष 1952 में हालीवुड फिल्म 'दि केन मुटिनी" की शूटिंग इस विलक्षण स्थल पर की गयी थी। 
    इसमें इस अद्भूत झरना को दृश्यावलोकित किया गया। दिलचस्प यह रहा कि यह पहाड एक होटल के शीर्ष पर है। वर्ष 1870 में होटल का मालिक अपने विजिटर के साथ आया था। पहाड-झरना का करिश्मा देख कर स्थल को पर्यटन का स्वरुप दे दिया। 
     हालात यह हैं कि देश-दुनिया से साल में 3.50 मिलियन से अधिक पर्यटक इस आग उगलते झरना को देखने आते हैं। 'फायरफॉल" के इस झरना पर वस्तुत: सूरज की रोशनी पहाड से टकरा कर पड़ती है। पहाड से टकरा कर आने वाली रोशनी झरना के पानी के रंग को आग के रंग में बदल देती है। 
   शाम करीब 5.30 बजे इस स्थल पर अद्भूत नजारा उत्पन्न होता है। यह एक चमत्कारी परिवर्तन होता है। विश्व के आकर्षण वाले राष्ट्रीय उद्यानों में इसे एक माना जाता है। पर्यटकों की आवाजाही निरन्तर बनी रहती है।

Sunday 15 October 2017

कासा बाटलो : कहीं हड्डियां तो कहीं खोपड़ी

    इच्छाशक्ति हो तो क्या नहीं हो सकता ! जी हां, बस कुछ नया या अनूठा करने की इच्छा हो तो निश्चित नया आयाम विकसित होगा।


  देश-दुनिया में असंख्य अजूबा या विस्मय हैं। स्पेन के बार्सिलोना में सनक या इच्छाशक्ति ने एक ऐसा महल बना डाला जिसे देखने के लिए दुनिया भर पर्यटक-बाशिंदे आते हैं।  इस खास महल 'कासा बाटलो" को देखने या घूमने के लिए 'ऑनलाइन" एण्ट्री टिकट भी बुक कराये जा सकते हैं। इससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि 'कासा बाटलो" दुनिया का खास एवं अद्भूत महल है।
     महल 'कासा बाटलो" वैसे तो बना पत्थर, मोजेक एवं बालू के सम्मिश्रण से है लेकिन ऐसा एहसास होता है कि इसमें हड्डियों का उपयोग किया गया है। आकार-प्रकार एवं महल की संरचना हड्डियों पर आधारित दिखती है लेकिन वस्तुत: ऐसा है नहीं। बार्सिलोना के इस महल की अद्भूत डिजाइन इसे कुछ खास बनाती है। महल 'कासा बाटलो" को मशहूर वास्तुकार एंटोनी गौड़ी ने डिजाइन किया।
   वास्तुकार एंटनी गौड़ी को खास तौर से अलंकरण, गुफाओं की संरचना एवं प्राकृतिक परिस्थितियों की संरचना के लिए जाना जाता है। इस खूबसूरत महल का स्वामित्व जोसेप बाटलो एवं कासा बाटलो के पास है। इसे जोसफ बाटलो हाउस भी कहा जाता है। महल को करीब एक सौ पन्द्रह साल पहले 1900 में खरीदा गया।
    नव-डिजाइन व नव-निर्माण को ध्यान में रख कर इसे ध्वस्त कर दिया गया। वास्तुकार एंटोनी गौडी़ की डिजाइन के आधार पर इसका निर्माण किया गया। इसमें रंगीन स्तरित बालू, खास किस्म के पत्थर, मोजैक, सेरेमिक टाइल्स आदि का उपयोग किया गया।
    दिलचस्प विशेषता यह है कि बालकनी, कक्ष, खम्भे सहित सभी कुछ हड्डियों के आकार-प्रकार एवं सरंचना आधारित हैं। महल को गौर से देखें तो खोपड़ी नुमा ढ़ांचा दिखता है। ऐसा प्रतीत होता है कि बालकनी की कैनोपी इंसानी खोपड़ी है। कांच की खिड़कियां भी खास डिजाइन हैं। 
     इंटीरियर भी हड्डियों का आभास कराता है। एंटोनी ने इसे 1904 में डिजाइन किया लेकिन इसके निर्माण में कई वर्ष लग गये। महल की आकृति में कहीं चाकू का आभास होता है तो कहीं अजगर या तराजू दिखता है। खास तौर से अब इस शानदार एवं खास महल का संग्रहालय के तौर पर इस्तेमाल हो रहा है। 
     वास्तुकला का यह महल एक शानदार उदाहरण है। यहां प्रवेश के लिए पर्यटक को 18 यूरो बतौर शुल्क चुकाने होते हैं। बार्सिलोना में इस महल को 'कंकाल जैविक गुणवत्ता" का नमूना माना जाता है।
    अनियमित अण्डाकार खिड़कियां बताती हैं कि खास बनाने में कहीं कोई कोर कसर नहीं छोड़ी गयी। बालकनी में खोपड़ी दिखती है तो खम्भों में हड्डियां साफ तौर पर नजर आती हैं।

Friday 13 October 2017

ऑकलैण्ड का खास यलो ट्री हाउस रेस्टोरेन्ट

    'कंक्रीट के जंगल" शायद अब रास नहीं आते। जी हां, देश-दुनिया में कंक्रीट के जंगल लगातार तेजी से बढ़ हैं। कुछ यूं कहें कि गंगनचुम्बी इमारतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी। 

  ऐसे में अब 'इको फ्रैण्डली" हब अब बाशिंदों की पसंद बनने लगे। 'इको फ्रैण्डली" अर्थात सब-कुछ प्रकृति की गोद से उभरा। ऑकलैण्ड न्यूजीलैण्ड के इंजीनियर्स ने एक रैस्टोरेन्ट को कुछ इस तरह रचा कि दुनिया दीवानी हो गयी। न्यूजीलैण्ड के ऑकलैण्ड में वास्तुकार, इंजीनियर्स व प्रबंधन के गठजोड़ ने खास किस्म का रेस्टोरेन्ट बना डाला। 
   इस खूबसूरत रेस्टोरेन्ट को नाम दिया गया 'यलो ट्री हाउस रेस्टोरेन्ट" । ऑकलैण्ड के आर्कीटेक्ट पीटर इअसिंग व लुसी गौंटलेट ने इसे डिजाइन किया। परियोजना प्रबंधक बिल्डिंग इंटेलिजेंस ग्रुप के गैरेथ स्क्रीवोअ, ब्लेयर वोल्फग्राम, जो होल्डन आदि रहे। 
   इस रेस्टोरेन्ट में रोशनी की व्यवस्थाओं से लेकर फर्नीचर तक की सभी की अपनी अलग-अलग जिम्मेदारियां रहीं। ऑकलैण्ड के इस खूबसूरत रेस्ट्रां में लंच व डिनर के लिए दूर-दराज से बाशिंदे व पर्यटक आते हैं। नाइट डिनर हो या कैंडल डिनर। यह स्थान कभी खाली नहीं रहता। 
    खास यह है कि इस बेहतरीन 'रेस्ट्रां" में एक साथ अधिकतम डेढ़ दर्जन अर्थात 18 मेहमान ही भोजन का लुफ्त उठा सकते हैं। यह 'यलो ट्री हाउस रेस्टोरेन्ट" एक विशाल पेड की शाखाओं में रचा-बसा है। इसकी ऊंचाई करीब चालीस फीट है। आसपास घास का खुला मैदान। रेस्टोरेन्ट में रसोई से लेकर शौचालय आदि सभी व्यवस्थायें सुनिश्चित हैं।
      करीब दस मीटर चौड़ाई वाला यह खास रेस्टोरेन्ट खासी ख्र्याति अर्जित कर रहा है। कैफे शैली का यह रेस्टोरेन्ट मेहमानों की आवाजाही से हमेशा गुलजार रहता है। मौसम का इस रेस्टोरेन्ट पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता। डिजाइन एवं निर्माण के लिए इसे न्यूजीलैण्ड की शासकीय मान्यता हासिल है।

Thursday 12 October 2017

प्लेटविक झील : अपार खनिज सम्पदा

    दुनिया में विलक्षणता की कहीं कोई कमी नहीं। विलक्षण परिवेश हो या विलक्षण व्यक्तित्व कोई भी देखने-मिलने की ललक रख सकता है।

   क्रोएशिया की लेक (झील) श्रंखला भी अपनी विलक्षणता के लिए दुनिया में अपनी एक अलग पहचान रखती है। खास बात यह है कि क्रोएशिया की झील श्रंखला में एक दो नहीं बल्कि करीब डेढ़ दर्जन झीलें एक दूसरे से ताल्लुक रखती हैं फिर भी सभी का अस्तित्व स्वतंत्र एवं अलग है। 
    क्रोएशिया की प्लेटविक लेक एक प्राकृतिक बांध के तौर पर दिखती है। इसका सौन्दर्य देखने हर साल एक लाख से भी अधिक पर्यटक आते है। क्रोएशिया ने इस झील श्रंखला को राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया है। यूनेस्को वल्र्ड हेरिटेज साइट पर इसे स्थान मिला है।
    क्रोएशिया ने इसे वर्ष 1949 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया था। यह विलक्षण झील क्रोएशिया में बोस्निया एवं हर्जेगोविना की सीमा पर स्थित है। क्रोएशिया की इस झील प्लेटविक लेक खनिज सम्पदाओं से अति समृद्ध है। चूंकि राष्ट्रीय उद्यान घोषित है लिहाजा किसी भी प्रकार के खनन के लिए प्रतिबंधित है।
    यूनेस्को ने इस 1979 में विश्व धरोहर में शामिल किया था। यह क्रोएशियाई एवं एड्रियाटिक तटीय क्षेत्र है। यह झील करीब 296.85 वर्ग किलोमीटर अर्थात 73,350 एकड़ में फैली है।
    खनिज सम्पदाओं के साथ ही वन्य जीवन की भी बहुलता है। वन बिलाव, यूरोपीय बिल्लियां एवं भेडियों के असंख्य प्रजातियां इस क्षेत्र में स्वच्छंद विचरण करती हैं। पर्यटकों की आवाजाही से झील क्षेत्र गुलजार रहता है।

Wednesday 11 October 2017

मान्यता-परम्परा : हवा में लटकते शव

'परम्पराओं एवं मान्यताओं" का कहीं कोई अंत नहीं। जी हां, देश-दुनिया में अजीब-ओ-गरीब मान्यतायें एवं परम्परायें देखने-सुनने को मिलती हैं।

    अभी तक हैंगिंग टेम्पल, हैंगिंग फ्लाईओवर-ओवरब्रिाज, हैंगिंग रेस्ट्रां, हैंगिंग हाउस, हैंगिंग गार्डन आदि-अनादि सुुुना होगा लेकिन हैंगिंग कॉफिन नहीं सुना होगा लेकिन दुनिया में यह भी परम्परा है कि ताबुत (कॉफिन) को पहाड़ की चोटी पर लटकाया जाये। 
   आम तौर पर शव का अंतिम संस्कार करने से लेकर जमीन या कब्रिस्तान में दफन करने की व्यवस्थायें-परम्परायें देखते सुनते आये हैं लेकिन शव को ताबुुत में रख कर हवा में लटकाना नहीं सुना होगा। दुनिया के कई देशों में समुदायों के बीच परम्परा है कि शव को ताबुत में रख कर पहाड़ पर लटका दिया जाये। बताते हैं कि दुनिया में यह परम्परा करीब दो हजार वर्ष पुरानी है।
      मान्यता है कि पहाड़ों पर शव रखने से मृत व्यक्ति का अस्तित्व आसानी से प्रकृति की आबोहवा में मिल जाता है। हैंगिंग कॉफिन्स की परम्परा खास तौर से दुनिया के तीन देशों में देखने-सुनने को मिलती है। चीन, इण्डोनेशिया एवं फिलीपींस में यह परम्परा लम्बे समय से चली आ रही है।
     फिलीपींस के सगाधा में यह परम्परा सदियों से चली आ रही है। चीन में यांगटजी नदी के किनारे हैंगिंग काफिंस देखने को मिल जाते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो यह ताबुत मिंग राजवंश काल के हैं। किसी समय इस स्थान पर कॉफिन्स एक हजार से भी अधिक थे लेकिन अभी धीरे-धीरे यह संख्या काफी कम हो गयी है। 
    हालांकि अब इन कॉफिन्स को संरक्षित कर दिया गया है। इस स्थान को अब पर्यटन स्थलों की भांति मान्यता दी गई है। चीन के ताबुत बेहद खतरनाक तौर-तरीके पर दिखते हैं। आश्चर्य होता है कि आखिर ताबुत को इन खतरनाक स्थल पर कैसे रखा गया ? फिलीपींस में तो कुछ अलग ही परम्परा है।
       फिलीपींस के बुजुर्ग मृत्यु से पहले ताबुत को खुद तैयार करते-कराते हैं। परिजनों को अपनी भावनाओं से अवगत करा देते हैं कि उनकी इच्छा के मुताबिक शव को ताबुत में रख कर हवा में लटकायें। जिससे उनके शरीर का अस्तित्व प्रकृति की गोद में समविष्ट हो जायें। 
    मृत्यु के पश्चात शव को उसमें रख कर पहाडी गुफा में रख दिया जाता है। इण्डोनेशिया के सुलावेसी में भी इस तरह की मान्यतायें एवं परम्परायें मिलती हैं। इसी तरह की मान्यतायें परम्परायें दुनिया के कई देशों में देखने-सुनने को मिलती हैं।

Tuesday 10 October 2017

चूहों वाला मंदिर करणी मां का दरबार

    'चूहों की धमाचौकड़ी" के बीच 'आस्था का सैलाब" दिखे तो शायद आश्चर्यचकित हो जाएंगे। जी हां, चूहों की संख्या भी एक दो या सौ पचास नहीं बल्कि बीस हजार से अधिक चूहों की फौज। हो जाएंगे न आश्चर्यचकित।

   राजस्थान के बीकानेर से करीब तीस किलोमीटर दूर यह तीरथधाम है। जोधपुर रोड स्थित गांव देशनोक की सीमा पर यह विख्यात मंदिर है। इस मंदिर को मां करणी देवी के मंदिर के नाम से जाना जाता है। बताते हैं कि मां करणी देवी साक्षात जगदम्बा का अवतार थीं। मां करणी देवी के आशीर्वाद से ही बीकानेर व जोधपुर राज्य की स्थापना हुई थी।
  इस मंदिर परिसर में एक भव्य-दिव्य गुफा भी है। मां करणी देवी इसी गुफा में अपने इष्टदेव की पूजा-अर्चना किया करती थीं। आस्था के इस स्थान का इतिहास करीब साढ़े छह सौ वर्ष पुराना है। हिन्दु धर्मावलम्बियों के बीच इस स्थान को तीरथधाम के तौर पर देखा जाता है।
     देश-दुनिया में इसे 'चूहों वाला मंदिर" या 'मूषक मंदिर" के नाम से जाना जाता है। मां के दर्शन के लिए देश दुनिया से आने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। संगमरमर के पत्थरों से बने इस मंदिर की भव्यता-दिव्यता देखते ही बनती है। चांदी के किवाड़, सोने के छत्र व चूहों के प्रसाद के लिए चांदी का थाल खास हैं। मंदिर के दर-ओ-दीवार पर अंकित एवं उत्कीर्ण नक्कासी भी मन को लुभाती है। 
    चैत्र व शारदीय नवरात्र में मेलों का विशेष आयोजन होता है। मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही चूहों की फौज से आमना-सामना होना लाजिमी है। 
  चूहों की धमाचौकड़ी देख कर सहज ही इनकी संख्या यह बहुतायत का अनुमान लगाया जा सकता है। कमोबेश श्रद्धालुओं को मंदिर में प्रवेश बहुत संभल कर करना होता है क्योंकि चूहों की उछलकूद अत्यधिक होती है। चूहों की इस फौज से श्रद्धालुओं का न कोई नुकसान होता है आैर न ही कोई अन्य क्षति ही होती है। 
    यदि किसी दर्शनार्थी या श्रद्धालु को श्वेत अथवा सफेद चूहे के दर्शन हो जाएं तो अति उत्तम या शुभ माना जाता है। सुबह पांच बजे मंगला आरती व सांझ सात बजे आरती के समय तो चूहों का जुलूस देखने लायक होता है। मंदिर से असंख्य चमत्कारी घटनाएं जुड़ी हैं। 
    श्रद्धालुओं की मनौती पूरी होती है। ऐसी श्रद्धालुओं के बीच मान्यता है। देश का शायद यह पहला मंदिर है, जहां बीस हजार से अधिक चूहों की फौज निवास करती है। खास बात यह है कि चूहों का जूठा प्रसाद ही भक्तों, श्रद्धाओं व अनुयायियों को वितरित किया जाता है। 
     आश्चर्य ही है कि इतनी बड़ी तादाद में चूहों के होने के बावजूद मंदिर परिसर में कहीं भी बदबू नहीं आती। बताते हैं कि करणी माता बीकानेर राजघराने की कुलदेवी भी हैं। करणी माता के इस मंदिर का दिव्य-भव्य निर्माण बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह ने बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में कराया था।

Monday 9 October 2017

विलक्षणता: विष्णु मंदिर का रक्षक मगरमच्छ

      हिंसक जीव-जन्तु यदि अपना मूल स्वभाव छोड़ दें तो शायद अद्भुत या ईश्वरी चमत्कार ही कहा जाएगा। 'मगरमच्छ" मांसाहार का त्याग कर दे या यंू कहें कि शाकाहार जीवन जीने लगे तो शायद आश्चर्य होगा। यह कोई किवदंती नहीं है बल्कि हकीकत है। 

    जी हां, दक्षिण भारत के राज्य केरल के अनन्तपुर में यह विलक्षणता देखने को मिल रही है। अनन्तपुर के अनन्त पद्मनाभ स्वामी मंदिर की रक्षा-सुरक्षा एक मगरमच्छ करता है। यह मगरमच्छ हिंसक न होकर शांत स्वभाव से झील में विचरण करता रहता है। 
    अनन्त पद्मनाभ स्वामी मंदिर झील पर बना है। मंदिर के आसपास झील का जल हिचकोले लेते रहता है। श्रद्धा व आस्था का यह केन्द्र मनोरम व लुभावना भी है। मुख्यत: यह मंदिर भगवान विष्णु जी का है।
      इसे अनन्त पद्मनाभ स्वामी मंदिर या भगवान विष्णु मंदिर अथवा बबिया मंदिर के नाम से जाना जाता है। खास बात यह है कि इस मंदिर क्षेत्र की रक्षा-सुरक्षा बबिया नाम का यह शाकाहारी मगरमच्छ करता है। मंदिर के पुजारी इसे अपने हाथों से भगवान का भोग अर्थात प्रसाद खिलाते हैं। बस इसी प्रसाद से मगरमच्छ का पेट भरता है।
     मंदिर प्रबंधन व पुजारियों के अलावा किसी को भी इस मगरमच्छ को कुछ भी खिलाने की अनुमति नहीं होती। विशेष बात यह भी है कि बारिश कम हो या अधिक इस झील का जल स्तर समान ही रहता है। न कम न अधिक। बताते हैं कि भगवान विष्णु जी के इस मंदिर परिसर की इस झील में मगरमच्छ सौ वर्षों से अधिक समय से रह रहा है। 
     इस मगरमच्छ से झील के अन्य जीव-जन्तुओं को भी कोई खतरा या नुकसान नहीं रहता। श्रद्धालुओं की मानें तो वर्ष 1945 में एक अग्रेंज सैनिक को झील में तैरता मगरमच्छ दिखा तो उसने गोली मार दी। गोली लगने से मगरमच्छ की मौत हो गई लेकिन बाशिंदों को आश्चर्य हुआ कि अगले दिन वह मगरमच्छ जिंदा तैरता दिखा। बताते हैं कि कुछ दिन बाद गोली मारने वाले सैनिक की सर्पदंश से मौत हो गई।
      इसे सांपों के देवता अनन्त का बदला माना गया। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि मंदिर की इस झील में मगरमच्छ के दर्शन हो जाएं तो भाग्यशाली होंगे। प्रबंधन की मानें तो मगरमच्छ ईश्वर का दूत है। जब कभी भी मंदिर या उसके आसपास कुछ भी अनिष्ट होने की आंशका होती है तो मगरमच्छ से संकेत मिल जाते हैं किन्तु मगरमच्छ के रहते कोई अनिष्ट नहीं हो पाता।
      मान्यता है कि झील में एक मगरमच्छ की मौत होती है तो रहस्यमयी ढंग से दूसरा मगरमच्छ स्वत: प्रकृट हो जाता है। खास बात यह है कि इस मंदिर की देव प्रतिमाएं पत्थर अथवा धातुओं की नहीं हैं बल्कि सत्तर से अधिक आैषधीय सामग्री से प्रतिमाएं सृजित हैं।
     इन प्रतिमाओं को 'कादु शर्करा योगं" के नाम से जाना जाता है। प्रबंधन की मानें तो वर्ष 1972 में इन प्रतिमाओं को पंचलौह धातु की प्रतिमाओं में बदला गया था लेकिन इसके मूल स्वरुप को बरकरार रखने को ध्यान में रख कर पुन: 'कादु शर्करा योगं" में परिवर्तित कर दिया गया। 
     यह मंदिर तिरुअनन्तपुरम के अनन्त पद्मनाभ स्वामी का मूल स्थान बताया जाता है। बाशिंदों का विश्वास है कि भगवान यहीं आकर स्थापित हुए थे। मंदिर के दर-ओ-दीवार आकर्षक चित्र श्रंखला से अलंकृत हैं। मंदिर परिसर में एक गुफा भी है। 
     इस गुफा का मुख एक ऐसे तालाब की ओर खुलता है, जहां का जल मौसम से प्रभावित नहीं होता। हमेशा एक समान रहता है। विशिष्टताओं से परिपूरित इस मंदिर में दर्शन व अलौलिक छटा के दिग्दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का अनवरत आना जाना लगा रहता है।

Sunday 8 October 2017

दुनिया की बेहतरीन रोमांचक गुफा क्रुबेरा

     खण्डहर में भी सौन्दर्य ! जी हां, सामान्यत: खण्डहर को नैराश्य से अभिभूत रेखांकित किया जाता है। आश्चर्य ही होगा कि नैराश्य में भी सौन्दर्य का लालित्य आकर्षित करे। 

    देश-दुनिया में प्राकृतिक सौन्दर्य से लबरेज गिरि-कंदराओं, गुफाओं, घाटियों व खण्डहरों की एक लम्बी श्रंखला है। जार्जिया के अबखाजिया स्थित क्रुबेरा गुफा को दुनिया की सबसे लम्बी व आकर्षक गुफा का दर्जा हासिल है। 
  दुनिया की सबसे लम्बी व खूबसूरत गुफा का दर्जा हासिल करने वाली क्रुबेरा गुफा को वैज्ञानिकों ने करीब पचपन साल पहले 1960 में खोजा था। जार्जिया के पश्चिमी काकेशस में गाग्रा में स्थित है।
      इसे अब अबखाजिया के नाम से जाना जाता है। प्रवेश द्वार से गुफा करीब 2197 मीटर अर्थात 7208 फुट गहराई वाली है। विशेषज्ञों की मानें तो इसे 2001 में दुनिया की सबसे अधिक गहरी व लम्बाई वाली गुफा का दर्जा हासिल हुआ। 
     इस गुफा का यूक्रेन स्पेलियोलोजिकल एसोसियेशन के विशेषज्ञों ने विधिवत अध्ययन किया। यूक्रेनी गोताखोर जिनेडी स्मोखिन ने इस विशालतम गुफा में एक अति सुन्दर ड्राइविंग टर्मिनल बनाया। करीब 13.432 वर्ग किलोमीटर दायरे वाली इस गुफा में प्राकृतिक सौन्दर्य निहारते ही बनता है। इस गुफा के अन्दर सौन्दर्य की एक अलग ही दुनिया दिखती है।
      इस विशालतम गुफा में रोशनी के कोई इंतजाम न होने के बावजूद कोना-कोना प्राकृतिक प्रकाश से जगमग रहता है। गुफा का एक एक कण अपने सौन्दर्य से दर्शकों एवं पर्यटकों को आकर्षित करता व लुभाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे किसी शिल्पकार ने बड़े ही सलीके से गुफा का कोना-कोना गढ़ा हो लेकिन यह गुफा दुनिया को प्रकृति का सुन्दर व बेहतरीन उपहार है। जिसे देखने के लिए दुनिया से बड़ी संख्या में दर्शक एवं पर्यटक आते हैं।
      चूना पत्थर के शिलाखण्ड पर आधारित इस गुफा में रोमांच की कोई सीमा नहीं है। जलाशय में जल निर्मलता का सौन्दर्य अभिभूत कर देता है तो वहीं प्रकाश पुंज का आलोक स्वप्नलोक अथवा स्वर्ग का एहसास कराता है। गुफा का दुर्गम मार्ग होने के बावजूद सैलानियों का तांता लगा रहता है। 
      खास तौर से पर्यटक व खिलाडियों का जमावड़ा रहता है लेकिन हर किसी को गुफा में प्रवेश की इजाजत नहीं मिलती। स्थानीय प्रशासन की इजाजत के बाद ही गुफा में प्रवेश की इजाजत मिलती है। सौन्दर्य से लबरेज इस गुफा को वोरोन्या गुफा के नाम से भी जाना जाता है।
      जार्जिया के ब्लैक महासागर की अरेबिक मासिक पहाड़ी पर यह विशालतम गुफा स्थित है। गुफा में प्रवेश करना अत्यंत रोमांचक महसूस होता है। गुफा में प्रवेश करने के करीब 1300 मीटर के बाद गुफा कई हिस्सों में विभक्त हो जाती है। जिसे जिस दिशा में जाना हो, यह खुद तय करना होता है।
       इसे कौओं की गुफा के तौर पर भी देखा जाता है क्योंकि इस सुन्दर गुफा में कौओं के असंख्य घोसले देखने को मिल जाएंगे। हालांकि इन कौओं से दर्शक, पर्यटक व खिलाड़ियों को कोई दिक्कत या परेशानी नहीं होती।

Thursday 5 October 2017

ब्लू होल : मनोरंजकता में भी खतरा

    'सौन्दर्य शास्त्र" का कथ्यात्मक तथ्यात्मक आलोक निश्चय ही किसी को भी लुभाने में समर्थ कहा जाएगा। प्राकृतिक सौन्दर्य जहां एक ओर मन-मस्तिष्क को प्रफुल्लित करता है तो वहीं इसमें खतरे भी कम नहीं। 

   लाल सागर मिरुा तट पर प्राकृतिक सौन्दर्य का नायाब स्थल है। इस स्थल को ब्लू होल के नाम से दुनिया में जाना-पहचाना जाता है। गोताखोर समुदाय का यह एक अति पसंदीदा स्थल है लेकिन ब्लू होल गोताखोरों के लिए बेहद खतरनाक भी माना जाता है। देश दुनिया के तमाम पर्यटक इस स्थल पर गोतोखोरी देखने जाते हैं।
     इसे 'दुनिया के सबसे खतरनाक गोता स्थल" व 'गोताखोर के कब्रिस्तान" के तौर भी जाना जाता है। करीब सौ मीटर गहराई वाले इस ब्लू होल में करीब तीस मीटर लम्बी सुरंग भी है। 
     हालांकि इसका प्रवेश स्थल करीब छह मीटर चौडा़ई वाला है। सुरंग को कट्टर के रुप में जाना जाता है। इस इलाके में मंूगा व चट्टानी मछली की उपलब्धता बहुतायत में है। मिरुा शासन ने इस स्थल पर खास तौर से गाइड्स व प्रशिक्षित कर्मचारी तैनात किए हैं जिससे किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना को रोका जा सके।
     हालांकि मनोरंजक ड्राइविंंग के लिए बड़ी तादाद में गोताखोर यहां आते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो अति गहराई में नाइट्रोजन रसायन का प्रभाव मिलता है। नाइट्रोजन का प्रभाव गोताखोरों के लिए बेहद खतरनाक होता है क्योंकि इससे गोताखोरों में शराब का नशा जैसा होने लगता है। 
     नशा का प्रभाव शरीर में होते ही गोताखोरों का फिर बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में गोताखोर की मौत हो जाती है। ब्लू होल बेहद आकर्षक अर्थात मेहराब जैसा काफी कुछ प्रतीत होता है। ब्लू होल की गहराई में धीरे-धीरे गैसों के मिश्रित प्रभाव से गोताखोर को नींद आने लगती है।
     बस गोताखोरों की मौत के यही कारण होते हैं। हालांकि शासकीय गाइड्स निश्चित सीमा से अधिक आगे जाने के इजाजत नहीं देते हैं। फिर भी गोताखोर जोश व मनोरंजकता में निश्चित दायरे से कहीं आगे बढ़ जाते हैं। जिससे हादसे हो जाते है।
      मिरुा के शासकीय अफसरों की मानें तो अब तक सौ से अधिक गोताखोर मौत का शिकार हो चुके हैं। मौतों को देख कर मिरुा शासन ने एहतिहाती उपाय किए हैं। ऐसा नहीं कि इस क्षेत्र में जीवाश्म (जीव-जन्तु) भी बड़ी तादाद में पाए जाते हैं। मगरमच्छ व कछुओं की तादाद कहीं अधिक होती है। इस क्षेत्र में रसायनिक पदार्थों की उपलब्धता भी पर्याप्त मात्रा में है। खास बात यह है कि ब्लू होल का जल कहीं मीठा तो कहीं खारा है।

Wednesday 4 October 2017

दुनिया का नायाब अमेरिका का गोल्डन गेट ब्रिज

     वास्तुकला की बात हो या नक्कासी या फिर विकास की फर्राटा दौड़ हो... दुनिया में नायाब आयाम गढ़ने में कोई देश किसी से पीछे नहीं। 

  नदियों व नहरों पर झूला पुलों की देश-दुनिया में एक लम्बी श्रंखला है लेकिन अमेरिका का गोल्डन गेट ब्रिज (सेतु) अपनी विलक्षणताओं के कारण दुनिया में अपनी एक अलग ही पहचान रखता है। कुल करीब 2737 मीटर लम्बाई वाला यह झूला पुल अब अपनी आयु के करीब अस्सी वर्ष पूर्ण करने वाला है। 
      इस झूला पुल का विधिवत उद्घाटन 27 मई 1937 को हुआ था। यह झूला पुल अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को को कई इलाकों व मुख्य महामार्गों से जोड़ता है। सैन फ्रांसिस्को खाड़ी के दोनों किनारों को जोड़ता है। विशेषज्ञों की मानें तो निर्माणकाल में इस झूला पुल को दुनिया का सबसे लम्बा झूला पुल माना गया था।
       यह अमेरिका के एक सौ एक महामार्गों को जोड़ता है। सिक्स लेन की चौड़ाई वाले इस पुल पर एक साथ सैकड़ों वाहन फर्राटा भरते हैं। करीब नब्बे फुट इस पुल की चौड़ाई है। जबकि ऊंचाई 227 मीटर से भी अधिक है। इसके निर्माण में लाखों टन लौह का विभिन्न तौर तरीके से इस्तेमाल किया गया। 
      डिजाइन भी अद्भूत है। सैन फ्रांसिस्को, कैलीफोर्निया व मैरीन काउंटी सहित कई क्षेत्रों के लिए यह विशेष विकास का आयाम है। सांझ ढ़लते ही गोल्डन गेट ब्रिज व आसपास का इलाका रोशनी की चकाचौंध से जगमगा उठता है। सैन फ्रांसिस्को एवं कैलिफोर्निया के लिए यह एक अंतर्राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न बन चुका है। सांझ होने के साथ ही खाड़ी का जल भी उछाल मारता है। 
      कई बार तो खाड़ी का जल-पानी उछाल मार कर पुल तक भी पहंुच जाता है लेकिन यह जल क्रीड़ा भी यात्रियों-राहगीरों व पर्यटकों को आंनदित करती है। हालांकि सामान्य जल स्तर से इस पुल की ऊंचाई अर्थात नीचे का हिस्सा करीब 67 मीटर ऊंचा है। पुल के नीचे से जल यातायात भी निरन्तर चलता रहता है। 
     झूला पुल पर चकाचौंध रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था है। डिजाइन ऐसा है कि खाड़ी की जलक्रीड़ा का लाइटिंग सिस्टम पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता अर्थात जनजीवन को कोई खतरा नहीं रहता। दुनिया के इस विशालतम झूला पुल की कल्पना-परिकल्पना सस्पेंशन, ट्रस आर्क एवं टअस काजवेज ने की थी। 
     इस पुल के अनुरक्षण का कार्य गोल्डन गेट ब्रिज हाईवे एण्ड ट्रांसपोर्ट के हवाले है। यह विकास का एक आयाम भर ही नहीं बल्कि एक पर्यटन स्थल भी है। देश-दुनिया से बड़ी संख्या में पर्यटक इस पुल का सौन्दर्य निहारने आते हैं।

Tuesday 3 October 2017

चीन की गुफा में बसता झॉन्डॉन्ग गांव

    अत्याधुनिक युग में कहीं कोई गिरि कंदराओं व गुफाओं में जीवनयापन की बात करे तो शायद एकबारगी बेमानी सी लगेगी। 

    प्राचीनकाल में भले ही गुफाओं में जीवन दिखता हो लेकिन अत्याधुनिक काल में कोई भी गुफाओं में निवास करना या रहना पसंद नहीं करेगा। खास तौर से चीन जैसे विकसित राष्ट्र में तो यह कल्पना भी नहीं की जा सकती। जी हां, चीन में एक पूरा गांव एक गुफा में बसता है।
  हालांकि चीन की शासकीय व्यवस्थाओं ने आधुनिकता व सभ्यता की दुहाई देकर बाशिंदों को गुफा के इस गांव से बाहर निकालने की कोशिश भी की लेकिन बाशिंदों ने गांव को छोड़ने से साफ इंकार कर दिया। चीन के गुइझोऊ प्रांत के एक हिम शिखर पर झॉन्डॉन्ग गांव बसता है।
   इस गांव में एक सैकड़ा से अधिक परिवार बसते हैं। समुद्र तल से इस गांव की ऊंचाई 1800 मीटर से अधिक है। विशाल गुफा में बसे इस गांव में शिक्षा, स्वास्थ्य से लेकर खेलकूद के बड़े मैदान तक सभी कुछ उपलब्ध है। चीन का यह गांव भले ही अत्याधुनिक न हो लेकिन आवश्यकता की सभी जरुरतें गांव में ही पूरी होती है।
     हालांकि चीन की शासकीय व्यवस्थाओं को गुफा का यह गांव कतई नहीं भा रहा है। शायद इसी को ध्यान में रख कर चीन की शासकीय व्यवस्थाओं को देखने वाले अफसरों ने इस गुफा के स्कूल को 2008 में बंद कर दिया। तर्क यह रहा कि यह स्कूल चीन की सभ्यताओं के अनुरुप नहीं है।
   बाशिंदों ने व्यवस्थाओं के सामने झुकने से इंकार कर दिया। कोई विरोध नहीं कोई प्रदर्शन नहीं। अन्तोगत्वा 2011 में स्कूल पुन: चालूू हो गया। स्कूल में नित्य दो घंटे शिक्षा दी जाती है। स्कूल में छात्र कोई टाटपट्टी पर बैठ कर पढ़ाई नहीं करते बल्कि बाकायदा कुर्सी व बेंच की व्यवस्था है। 
     ब्लैक बोर्ड भी है तो रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था भी है। छात्र व शिक्षक दोनो ही इस गुफा के गांव के ही होते हैं। गांव में बाशिंदों की खोज के आधार पर चिकित्सा एवं स्वास्थ्य व्यवस्थाएं भी चलती हैं तो पीने के पानी सहित सभी जरुरतें गांव में ही पूरी होती हैं।
      हालांकि यह गांव गुफा में काफी ऊंचाई पर है। खरीदारी करने के लिए गांव के बाशिंदों को बाजार जाना पड़ता है। बाजार इस गांव से करीब पन्द्रह किलोमीटर दूूर है। गांव के बाशिंदे चाहते हैं कि चीन की शासकीय व्यवस्थाओं के तहत गांव का विकास हो लेकिन सिस्टम की लाचारी है कि चाहते हुए भी गुफा के अंदर विकास नहीं कर पा रहे हैं। 
      इन सब के बावजूद इस गुफा के बाशिंदे खुश हैं। बताते हैं कि गुफा का यह गांव सदियों से यूं ही चला आ रहा है। गांव के बाशिंदे अपनी सभी आवश्यकताओं का इंतजाम खुद ही करते हैं। इसके लिए वह किसी सहायता पर निर्भर नहीं रहते।

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