Friday 12 January 2018

खाजू ब्रिज : नायाब अरेबियन शिल्पकला

    'सौन्दर्य शास्त्र" की इबारत भले ही कहीं न दिखे लेकिन सौन्दर्य बोध देश-दुनिया को अपने शिल्प से बरबस आकर्षित करता है।

  ईरान को भले तेल उद्योग-धंधे एवं रेगिस्तानी इलाके के तौर पर देश-दुनिया में देखा जाता हो लेकिन उसके शिल्प का अपना एक अलग मुकाम है। 'अरेबियन शिल्पकला" की अपनी विशिष्टताएं हैं।
    'अरेबियन शिल्पकला" का सौन्दर्य खास ही नहीं आम अर्थात सार्वजनिक स्थलों पर भी दिखता है। रेगिस्तान में जहां एक ओर जल उपलब्धता का संकट खड़ा दिखता हो वहीं शिल्प सौन्दर्य विशिष्ट हो तो 'वाह वाह" लाजिमी हो जाता है।
     ईरान का इस्फान शहर विशिष्टताओं के साथ ही सौन्दर्य की गाथा भी संग रखता है। इस्फान का 'खाजू आर्च ब्रिज" अरेबियन शिल्पकला का अनुपम उत्कीर्ण शिल्प है। कोरइ नदी की कलकल बहती धारा के उपर शिल्प सौन्दर्य का निखार स्वत: आकर्षित करता है। निर्मल जलधारा के उपर झूलता ब्रिज (पुल) देश-दुनिया के लिए एक विशिष्ट आकर्षण है।
     खास यह है कि इस पुल की बनावट सामान्य पुलों जैसी नहीं है। सामान्यत: यह पुल शानदार महल अथवा बावड़ी जैसा दिखता है। सामान्यत: पर्यटक इस पुल से गुजरने के बजाय शिल्पकला का आनन्द एवं अनुभूति के लिए रुकते हैं।
    हालांकि यह पुल बहुत अधिक लम्बा नहीं है लेकिन पुल की ख्याति बहुत अधिक है। 'खाजू आर्च ब्रिज" वैसे तो 1650 ईसवी में बना था लेकिन देख कर ऐसा एहसास होता है कि जैसे इसका निर्माण अभी हाल के कुछ वर्षों पूर्व हुआ हो। पुल 133 मीटर लम्बा है तो वहीं 23 मेहराब भी हैं। मेहराब का शिल्प देखते ही बनता है। बादशाह शाह अब्बास ने इस बेशकीमती एवं अति खूबसूरत पुल का निर्माण कराया था। इस ब्रिज के मध्य में दो विशाल कक्ष हैं।
     इन विशाल-दिव्य-भव्य कक्ष का उपयोग बादशाह शाह अब्बास व उनके वारिसान आरामगाह के तौर पर करते थे। हालांकि अब इन कक्ष को आम जनता को अवलोकनार्थ खोल दिया गया है। ईरान का यह ब्रिज अरेबियन शिल्पकला का अनुपम एवं नायाब शिल्प है।
    विशेषज्ञों की मानें तो फारस के बादशाहों ने घोड़ों एवं बैलगाडि़यों को नदी पार कराने के लिए पुल की आवश्यकता महसूस हुयी थी। हालांकि अब पुल बाढ़ के संभावित खतरों को रोकने में कारगर दिखता है। पुल पर दो अष्टभुजाकार पैवेलियन बने हैं। पैवेलियन से पुल के सौन्दर्य को निहारा जा सकता है। खूबसूरती एवं सुकून यहां महसूस किया जा सकता है।

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